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नन्दीसूत्रम्
१. आवर्तनता, २ . प्रत्यावर्त्तनता, ३ अवाय, ४. बुद्धि, ५. विज्ञान | यह अवाय का वर्णन हुआ ।।सूत्र ३३।
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टीका - इस सूत्र में अवाय और उसके भेद तथा पर्यायान्तर नाम दिए गए हैं। क्योंकि ईहा के पश्चात् विशिष्ट बोध कराने वाला अवाय है । इसके भी पहले की तरह ६ भेद बतलाए गए हैं, तत्पश्चात् उसके एकार्थक, नानाघोष और नाना व्यञ्जनों से युक्त निम्न लिखित पाँच नाम हैं
१. श्रावर्त्तनता - ईहा के पश्चात् निश्चय-अभिमुख बोधरूप परिणाम से पदार्थों का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करना, उसे आवर्तनता कहते हैं ।
२. प्रत्यावर्त्तनता - ईहा के द्वारा अर्थों का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करना, उसे प्रत्यावर्तनता कहते हैं ।
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वाय – सब प्रकार से पदार्थों के निश्चय को अवाय कहते हैं ।
४. बुद्धि - निश्चयात्मक ज्ञान को बुद्धि कहते हैं ।
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५. विज्ञान - विशिष्टतर निश्चय किए हुए ज्ञान को विज्ञान कहते हैं । अर्थात् निश्चयात्मक ज्ञान के यदि हम पाँच भाग करें तो वह क्रमशः उत्तरोत्तर स्पष्ट, स्पष्टतर, और स्पष्टतम बढ़ता ही जाता है । अवग्रह और ईहा ये दोनों दर्शनोपयोग होने से अनाकारोपयोग में गर्भित हो जाते हैं तथा अवाय और धारणा ये दोनों ज्ञान रूप होने से साकारोपयोग में । बुद्धि और विज्ञान से ही पदार्थों का सम्यक्तया निश्चय होता है ।सूत्र ३३ ।।
४. धारणा
मूलम् - से किं तं धारणा ? धारणा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा- १. सोइंदिय-धारणा, २ . चक्खिं दिय-धारणा, ३. घाणिदिय-धारणा, ४. जिब्भिंदिय-धारणा, ५. फासिंदिय-धारणा, ६. नोइंदिय-धारणा । तीसे णं इमे एगट्टिया नाणाघोसा, नाणावंजणा, पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा - १. धारणा, २ . साधारणा, ३. ठवणा, ४. पइट्ठा, ५. कोट्ठे से त्तं धारणा ।। सूत्र ३४ ||
छाया - अथ का साधारणा ? धारणा षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - १. श्रोत्रेन्द्रिय-धारणा, २. चक्षुरिन्द्रिय-धारणा, ३. घ्राणेन्द्रिय-धारणा, ४. जिह्व न्द्रिय-धारणा, ५. स्पर्शेन्द्रिय-धारणा, ६. नोइन्द्रिय-धारणा । तस्या इमानि एकार्थिकानि नानाघोषाणि, नानाव्यंजनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा - १. धारणा, २. साधारणा, ३. स्थापना, ४. प्रतिष्ठा, ५. कोष्ठः, सा एषा धारणा || सूत्र ३४||
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया - गुरुदेव ! वह धारणा कितने प्रकार की है ? उत्तर