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अवाय
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५. विमर्श-क्षयोपशम विशेष से स्पष्टतर सद्ध तार्थ के अभिमुख, व्यतिरेक धर्म के त्याग करने से और अन्वय धर्म के अपरित्याग से स्पष्टतया विचार करना विमर्श कहलाता है, जैसे कि है-"तत ऊध्वं क्षयोपशमविशेषात् स्पष्टतरं सद्भ तार्थविशेषाभिमुखमेव व्यतिरेकधर्मपरित्यागतोऽन्वयधर्मापरित्यागतोऽन्वयधर्मविमर्शनं विमर्शः ।" इस प्रकार ईहा के पर्यायान्तर नाम व्युत्पत्ति के साथ कहे गए हैं । सूत्र ३२॥
३. अवाय मूलम्-से किं तं प्रवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते, तं जहा–१ सोइंदियअवाए, २. चक्खिंदिय-अवाए ३. घाणिदिय-अवाए ४. जिभिदिय-प्रवाए, ५. फासिदिय-अवाए, ६. नो इंदिय-अवाए । तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणा घोसा, नाणा वंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा–१. प्राउट्टणया, २. पच्चाउट्टणया ३. अवाए, ४. बुद्धी, ५. विण्णाणे, से तं अवाए ।सूत्र ३३॥
छाया-अथ कः सोऽवायः ? अवायःषड्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-१. श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय २. चक्षुरिन्द्रिय-अवायः, ३. घ्राणेन्द्रिय-अवायः, ४. जिह्वन्द्रिय-अवायः ५. स्पर्शेन्द्रिय-अवायः । तस्य इमानि एकार्थिकानि नानाघोषाणि, नानाव्यञ्जनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा-१. आवर्तनता, २. प्रत्यावर्तनता, ३. अवायः (अपायः), ४. बुद्धिः, ५. विज्ञानं, स एषोऽवायः ।।सूत्र ३३॥
. पदार्थ से किं तं अवाए-वह अवाय कितने प्रकार का है ? अवाए छब्बिहे-छ प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया गया है, तं जहा-जैसे कि-सोइंदिय-श्रवाए-श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय, चक्खिंदियप्रवाए--चक्षु इन्द्रिय-अवाय, घाणिदिय-श्रवाए-घ्राणेन्द्रिय-अवाय जिभिदिय-प्रवाए-चिहन्द्रिय-अवाय फासिंदिय-प्रवाए-स्पर्शेद्रिय-अवाय, नोइंदिय-प्रवाए-नो इद्रिय-अवाय, तस्सणं-उसके णं-वाक्यालङ्कार में इमे-ये एगट्टिया-एकार्थक नाणाघोसा-नाना घोष नाणा वंजणा-नाना व्यञ्जनवाले पंच-पांच नामधिज्जा-नामधेय भवंति–होते हैं, तं जहा-जैसे आउट्टणया-आवर्तनता, पच्चाउट्टणयाप्रत्यावर्त्तनता, अवाए-अवाय-अपाय, बुद्धी-बुद्धि विण्णाणे-विज्ञान, से तं-यह वह अवाए-अवायमतिज्ञान है।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह अवाय मतिज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर दिया-अवाय छ प्रकार का है ? जैसे कि
१. श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय, २. चक्षुरिन्द्रिय-अवाय, ३. घ्राणेन्द्रिय-अवाय, ४. रसनेन्द्रियअवाय, ५. स्पर्शेन्द्रिय-अवाय, ६. नोइन्द्रिय-अवाय। उसके एकार्थक नानाघोष और नाना व्यञ्जन वाले ये पाँच नाम हैं, जैसे