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________________ परिणामिकी बुद्धि के उदारहण लिए किसी निर्जन प्रदेश में चला गया, जहां किसी स्त्री का तो क्या, पुरुष का भी संचार न हो सके। वहां जाकर एक नदी के किनारे ध्यानस्थ रहने लगा। वर्षा का पानी नदी में भरपूर आया । परन्तु उसके घोर तप के कारण दूसरी ओर बहने लगा। इसी कारण उसका नाम कुल बालक प्रसिद्ध हो गया । वह भिक्षा के लिए गांवों में नहीं जाता, अपितु जब कभी उधर से कोई यात्री गुज़रता, उस से जो कुल मिलता उसी पर निर्वाह करता। __मागधिका वेश्या ने कपट श्राविका का ढोंग रचकर साधु-सन्तों की सेवा में रह कर उनसे कूल बालक का पता लगा लिया। वेश्या नदी के समीप जाकर रहने लगी और धीरे-धीरे कूलबालक की सेवा भक्ति करने लगी । वेश्या की भक्ति और आग्रह को देख वह सांधु उसके घर पर गोचरी के लिये गया । वेश्या ने विरेचक ओषधि मिश्रित भिक्षा उसे दी, जिसे खाने से कुलबालक को अतिसार हो गया। वेश्या उसकी सेवा शुश्रूषा करने लगी। वेश्या के स्पर्श से कूलबालक का मन विचलित होगया और वेश्या में आसक्त होकर वह उसी का हो गया । अपने अनुकूल जान कर वेश्या उसे कुणिक के पास ले गई । राजा कुणिक ने कूलबालक से पूछा- विशाला नगरी का कोट कैसे तोड़ा जा सकता है तथा नगरी किस प्रकार स्वायत्त की जा सकती है ? उसने कुणिक को उसका उपाय बताया और कहा -मैं नगरी में जाता हूं, जब मैं आपको श्वेत वस्त्र से संकेत दूं तब आपने सेना सहित पीछे हट जाना, आदि समझाकर नैमित्तिक का वेष धारण करके नगर में चला गया । नगर निवासी नैमित्तिक समझ कर उससे पूछने लगे-दैवज्ञ ! कुणिक हमारी नगरी के चारों ओर घेरा डाल कर पड़ा हुआ है, यह संकट कब तक समाप्त होगा? कूलबालक ने अपने अभ्यास द्वार नगर वालों को बताया कि--तुम्हारे नगर में अमुक स्थान पर जो स्तूप खड़ा है, जब तक यह रहेगा, संकट बना ही रहेगा। आप यदि इसे उखाड़ डालें, गिरा दें तो शान्ति अवश्यंभावी है । न मत्तिक के कथन पर विश्वास करके वे स्तूप को भेदन करने लगे और उधर उसने सफेद वस्त्र से संकेत कर दिया। संकेत पाकराजा कुणिक अपनी सेना सहित पीछे हटने लगा। लोगों ने सेना को पीछे हटना देखा तो उन्हें नैमित्तिक की बात पर विश्वास आ गया और स्तूप को उखाड़ कर गिरा दिया, जिससे नगरी का प्रभाव क्षीण हो गया। कुणिक ने कूलबालक के कथनानुसार नगरी पर वापिस लौट कर चढ़ाई की और कोट को गिरा कर रक्षा प्रबन्ध को नष्ट करके नगरी पर अधिकार कर लिया। नगरी के अन्दर स्थित स्तूप को भेदन कर-गिरा कर विजय प्राप्त की जा सकती है, यह कूलबालक और कूलबालक को अपने वश में करना वैश्या की पारिणामिकी बुद्धि थी। (ऊपर लिखी गयी सभी आख्यायिकाएं नन्दी सूत्र की वृत्ति तथा 'सेठिया जैन ग्रन्थमाला' सिद्धांत बोल संग्रह के आधार पर लिखी गई हैं। -सम्पादक)
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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