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नन्दीसूत्रम्
और हाथी लेना चाहते हैं, तो मेरे हिस्से का राज्य मुझे दे दीजिए । परन्तु कुणिक ने इस उचित बात पर ध्यान न रख कर उस से वलात् हार और हाथी छीनने का विचार किया। इस बात का पता लगने पर विलकुमार हार-हाथी और अपने अन्तःपुर के साथ अपने नाना राजा बेड़ा के पास विशाला नगरी में चला गया । कुणिक ने दूत भेज कर चेड़ा राजा से विहल्लकुमार और अन्तःपुर सहित हार और हाथी को वापिस भेजने के लिए कहा ।
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दूत के द्वारा कुणिक का सन्देश सुन कर बेड़ा राजा ने उत्तर में कहा कि जिस प्रकार कुणिक राजा श्रेणिक का पुत्र और चेलना रानी का आत्मज और मेरा दुहित्र है, वैसे ही विहल्लकुमार भी है। अपने जीवन काल में श्रेणिक ने दोनों हार और हाथी विहल्लकुमार को दिए हैं। यदि कुणिक इन्हें लेना चाहता है, तो विलकुमार को राज्य का हिस्सा दे देवे दूत ने सजा बेड़ा का सन्देश कुणिक को जाकर सुनाया, जिसे सुन कर वह गुस्से में आगया और दूत से पुनः कहा- राज्य में जो श्रेष्ठ वस्तुएं पैदा होती हैं । वे राजा की होती हैं, गन्ध हस्ती और वंकचूड़ हार मेरे राज्य में पैदा हुए हैं। अत: मैं उनका स्वामी हूं और उन का उपभोग करना मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है । अतः तुम जाओ और यह आज्ञा चेड़ा राजा से कह दो कि वह विहल्लकुमार और हाथी तथा हार को लौटा देवें अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाए ।
दूत ने कुणिक का सन्देश चेड़ा राजा से कह सुनाया। चेड़ा राजा ने उत्तर दिया- यदि कुणिक अन्याय पूर्वक युद्ध करना चाहता है, तो न्याय के लिए मैं भी युद्ध करने को तैयार हूं । दूत ने चेड़ा राजा का सन्देश जाकर कुणिक को कह सुनाया । तत्पश्चात् राजा कुणिक अपने भाईयों और अपनी सेना को लेकर विशाला नगरी पर चढ़ाई करने के लिए चल दिया। उधर चेड़ा राजा ने अपने साथी राजाओं को बुला कर सब स्थिति को स्पष्ट किया। वे मित्र राजा भी चेड़ा राजा की न्यायसंगत बात सुन कर शरणागत की रक्षा के लिए और राजा चेड़ा की सहायता के लिए तैयार हो गए। दोनों पक्ष के राजा अपनी-अपनी मैदान में डट गए और घोर संग्राम हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप लाखों व्यक्तियों का निर्मम वध हुआ राजा चेड़ा पराजित होकर विशाला नगरी में घुस गए और नगर के चारों ओर के द्वार बन्द करवा दिए। राजा कुणिक ने नगर के कोट को छोड़ने की अत्यन्त कोशिश की। परन्तु निष्फल । तभी आकाश वाणी हुई- "यदि फूलबालक साधु चारित्र से पतित होकर मागधिका वेश्या से गमन करे तो कुणिक राजा विशाला का कोट गिरा कर नगरी पर अधिकार कर सकता है।" कुणिक ने उसी समय राजगृह से मागधिका वेश्या को बुलाया और उसे सारी स्थिति समझा दी। वेश्या ने कुणिक की आज्ञा स्वीकार करके कूलबालक को लाने का वचन दिया। ।
सेना को लेकर युद्ध के
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किसी आचार्य का एक शिष्य था। आचार्य जब भी कोई हित शिक्षा उसे देते, तो उसका विपरीत अर्थ निकाल कर उलटा गुरु पर क्रोध करता । एक बार आचार्य के साथ वह साधु किसी पहाड़ी प्रदेश से जा रहा था, तो आचार्य पर द्वेष बुद्धि से उन्हें मार देने के लिए पीछे से एक पत्थर लुढ़का दिया । आचार्य ने जब पत्थर आते देखा तो शीघ्रता से रास्ता बचा कर निकल गए। पत्थर नीचे जा गिरा । आचार्य, साधु के इस घृणित कृत्य को देख कर कोप में आकर कहने लगे ओ दुष्ट इस प्रकार का जघन्य - नीच कार्य भी तू कर सकता है ? ही होगा। शिष्य सर्वव गुरु की आज्ञा विरुद्ध कार्य करता था
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अच्छा' तेरा पतन भी अतः इस वचन को भी
तेरी इतनी धृष्टता ! किसी स्त्री के द्वारा झूठा सिद्ध करने के