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________________ पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण आप का सद्भाव और विनय प्रशंसनीय है। मैंने भी वज्चमुनि का महात्म्य समेझाने के लिए ही वाचना का कार्य उसे सौंपा था।" वच्चमुनि का यह समग्र श्रुतज्ञान गुरु से दिया हुआ नहीं, अपितु सुनने मात्र से प्राप्त हुआ है। गुरुमुख से ज्ञान ग्रहण किए बिना कोई वाचनागुरु नहीं बन सकता। अतः गुरु ने अपना सम्पूर्ण ज्ञान वज्रमुनि को सिखला दिया। ग्रामानुग्राम विहार यात्रा करते हुए एक समय आचार्य दशपुर नगर में पधारे। उस समय आचार्य भद्रगुप्त वृद्धावस्था के कारण अवन्ती नगरी में स्थिरवास से विराजमान थे । आचार्य सिंहगिरि ने दो मुनियों के साथ वज्रमुनि को उनकी सेवा में भेजा वज्रमुनि ने उनकी सेवा में रह कर दस पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया। मुनिवच को आचार्य पद पर स्थापना कर आचार्य सिंहगिरि अनशन कर स्वर्ग सिधार गये । आचार्य श्री व ग्रामानुग्राम धर्मोपदेश द्वरा जन-कल्याण में संलग्न हो गये। सुन्दर स्वरूप, शास्त्रीयज्ञामे, विविध लब्धियों और आचार्य की अनेक विशेषताओं से आचार्य वज्र का प्रभाव दिग्दिगान्तरों में फैल गया। तत्पश्चात् चिरकाल तक संयम व्रत का अराधन कर पीछे अनशन द्वारा देवलोक में पधारे। बच्चमुनि जी का जन्म विक्रम संवत् २६ में हुआ था और संवत् ११४ वि० में स्वर्गवास हुआ। उनकी 'आयु ८८ वर्ष की थी । वज्रमुनि ने बचपन में ही माता के प्रेम की उपेक्षा कर संघ का बहुमान किया। ऐसा करने से माता का मोह भी दूर किया और स्वयं संयम ग्रहण कर शासन के प्रभाव को बढ़ाया। यह बच्चमुनि की पारिणामिकी बुद्धि थी। १६. चरणाहत - एक राजा तरुण था । एकबार तरुण सेवकों ने आकर उससे प्रार्थना की"देव ! आप तरुण हैं, इस कारण आपकी सेवा में नवयुवक ही होने चाहियें। वे आप का प्रत्येक कार्यं योग्यता पूर्वक सम्पादित करेंगे। वृद्ध कार्यकर्ता अवस्था के परिपक्व होने से किसी काम को भी अच्छी तरह नहीं कर पाते। अतः वृद्ध लोग आप की सेवा में शोभा नहीं देते। यह बात सुनकर नवयुवकों की बुद्धि की परीक्षा करने के लिए राजा ने उन से पूछा – “यदि मेरे सिर पर कोई व्यक्ति पैर का प्रहार करे, उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ? नवयुवकों ने उत्तर में कहा- "महाराज ! ऐसे नीच को तिल-तिल जितना काट कर मरवा देना चाहिए।" वृद्धों से भी राजा ने यही प्रश्न किया । वृद्धों ने उत्तर दिया- "देव ! हम विचार कर इसका उत्तर देंगे । वृद्ध एकत्रित होकर विचारने लगे - " राजा के सिर पर रानी के अतिरिक्त अन्य कौन व्यक्ति है जो पैर का प्रहार कर सके ?" रानी तो विशेष सम्मान करने योग्य होती है। यह सोच, राजा के पास उपस्थित हुए और कहा- "महाराज ! जो व्यक्ति आप के सिर पर प्रहार करे, उसका विशेष आदर करके वस्त्राभूषणों से उसकी सेवा करनी चाहिए ।" वृद्धों का उत्तर सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उन्हीं को अपनी सेवा में रखा और प्रत्येक कार्य में उन्हीं की सहायता लेता। इससे राजा हर स्थान पर सफलता प्राप्त करता था । यह राजा और वृद्धों की पारिणामिकी बुद्धि है । १७. आंवला किसी कुम्हार ने एक व्यक्ति को कृत्रिम आंवला दिया। वह रंग-रूप, आकार-प्रकार और वजन में आंवले के समान ही था। आंवला लेकर पुरुष विचारने लगा - "यह आकृति आदि में तो आंवले जैसा ही है, किन्तु यह कठोर है और यह ऋतु भी आंबलों की नहीं है।" इस प्रकार उसने निर्णय किया कि असली नहीं, अपितु बनावटी है। यह उस पुरुष की पारिणामिकी बुद्धि है।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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