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पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण
"तं न विजाणेइ लोश्रो, जं सकडालो करेस्सइ। नन्दराउं मारेवि करि, सिरियउं रज्जे ठवेस्सइ॥"
अर्थात्-जनता इस बात को नहीं जानती कि शकटार मन्त्री क्या कर रहा है ? वह राजा नन्द को मार कर अपने लड़के श्रियक को राजा बनाना चाहता है। शिष्यों को यह श्लोक कण्ठस्थ करवा कर आज्ञा दी कि नगर में जा कर इसका प्रचार करो। शिष्य उसी प्रकार करने लगे। राजा ने भी एक दिन यह श्लोक सुन लिया और विचारने लगा कि मन्त्री के षड्यन्त्र का मुझे कोई पता ही नहीं है।
अगले दिन प्रातःकाल सदा की भाँति शकटार ने राजसभा में आ कर राजा को प्रणाम किया। परन्तु राजा ने मुंह फेर लिया । राजा का यह व्यवहार देख मन्त्री भय-भीत हुआ और घर में आकर सारी बात अपने लड़के श्रियक से कही । वह बोला-"पुत्र ! राजा का कोप भयंकर होता है, कुपित राजा वंश का नाश कर सकता है । इस लिए, हे पुत्र ! मेरा यह विचार है कि-कल प्रातःकाल जब मैं राजा
को नमस्कार करने जाऊँ और यदि राजा मह फेर ले तो तू तलवार से मेरी उसी समय गर्दन काट देना।" - पुत्र ने उत्तर दिया-"पिता जी ! मैं ऐसा घातक और लोक निन्दनीय नीच कार्य कैसे कर सकता हूँ?"
मन्त्री बोला-"पुत्र ! मैं उस समय तालपुट नामक विष मुंह में डाल लुंगा। मेरी मृत्यु तो उससे होगी किन्तु तलवार मारने से राजा का कोप तुम्हारे ऊपर नहीं होगा। इससे अपने वंश की रक्षा होगी। श्रियक ने वंश की रक्षार्थ पिता की आज्ञा को मान लिया।
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- अगले दिन मन्त्री अपने पुत्र श्रियक के साथ राजसभा में राजा को प्रणाम करने के लिये गया। मन्त्री को देखते ही राजा ने मंह फेर लिया और ज्यों ही प्रणाम करने के लिए मन्त्री ने सिर झुकाया, उसी समय श्रियक ने तलवार गर्दन पर मार दी। यह देख राजा ने श्रियक से पूछा-"अरे! यह क्या कर दिया ?" उत्तर में श्रियक ने कहा-" देव ! जो व्यक्ति आप को इष्ट नहीं, वह हमें कैसे अच्छा लग सकता है ?" श्रियक के उत्तर से राजा प्रसन्न हो गया और श्रियक से कहा-"अब तुम मन्त्री पद को स्वीकार करो।" श्रियक ने कहा-"देव ! मैं मन्त्री नहीं बन सकता। क्योंकि मेरे से बड़ा भाई स्थूलभद्र है, जो बारह वर्ष से कोशा वेश्या के घर पर रहता है, वह इस पद का अधिकारी है।" श्रियक की बात सुन कर राजा ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि "कोशा के घर जाओ और स्थूलभद्र को सम्मान पूर्वक लाओ, उसे मन्त्री पद दिया जायेगा।"
राजकर्मचारी कोशा के पास गये और स्थूलभद्र से सारा वृत्तान्त कह सुनाया। पिता की मृत्यु का समाचार सुन कर स्थूलभद्र को अत्यन्त दुःख हुआ। राजपुरुषों ने स्थूलभद्र से विनयपूर्वक प्रार्थना की"हे महाभाग ! आप राजसभा में पधारें, महाराज आप को सादर बुला रहे हैं।" यह सुन कर स्थूलभद्र राज्यसभा में आया। राजा ने सम्मान से आसन पर बिठलाया और कहा- "तुम्हारे पिताजी की मृत्यु हो चुकी है, अतः तुम मन्त्री पद को सुशोभित करो।" राजा की आज्ञा सुन कर स्थूलभद्र विचारने लगा कि-"जो मन्त्रीपद मेरे पिता की मृत्यु का कारण बना, वह मेरे लिए हितकर कैसे हो सकता है? माया-धन संसार में दुःखों का कारण विपत्तियों का घर है, क्योंकि