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________________ पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण २ . लिया कि मैं वास्तव में चन्द्रपान कर गयी हैं। अपने दौहृद को पूर्ण हुआ जान क्षत्राणी बहुत प्रसन्न हुई और पूर्ववत् स्वस्थ हो गई तथा सुख से गर्भ का पालन करने लगी। गर्भ का समय पूर्ण होने पर.क्षत्राणी ने चन्द्र जैसे बच्चे को जन्म दिया। बच्चा गर्भ में आने पर माता को चन्द्र का दोहला उत्पन्न हुआ था। अतः उस बच्चे का नाम भी चन्द्रगुप्त रखा गया। चन्द्रगुप्त जब जवान हो गया तो उसने मन्त्री चाणक्य की सहायता से नन्द को मार कर पाटलिपुत्र का राज्य संभाला। क्षत्राणी को चन्द्रपान कराना चाणक्य की पारिणामिकी बुद्धि थी। १३. स्थूलभद्र-पाटलिपुत्र में नन्द नामक राजा राज्य करता था। उसके मंत्री का नाम शकटार था। नन्द के स्थूलभद्र और श्रियक नाम के दो पुत्र थे तथा यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा नाम से सात कन्यायें थीं। उन कन्याओं की स्मरणशक्ति विलक्षण थी। यक्षा की स्मरणशक्ति इतनी तीव्र थी कि जिस बात को वह एक बार सुन लेती, उसे वह ज्यों की त्यों याद हो जाती । इसी प्रकार यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा भी क्रमशः दो, तीन, चार, पांच, छ और सात बार किसी बात को सुन लेतीं, तो उन्हें याद हो जाती थी। उसी नगर में वररुचि नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत बड़ा विद्वान था। वह प्रतिदिन एक सौ आठ श्लोकों की रचना कर लाता और राजसभा में राजा नन्द की स्तुति करता । राजा नित्य नये श्लोकों द्वारा अपनी स्तुति सुनता और फिर मन्त्री की ओर देखता, किन्तु मन्त्री कुछ न कह कर चुपचाप बैठा रहता। राजा मन्त्री को मौन देख कर वररुचि को कुछ भी पारितोषिक रूप में न देता और वररुचि प्रतिदिन खाली हाथ घर लौटता। वररुचि की स्त्री उसे उपालम्भ देती कि तुम कुछ भी कमाकर नहीं लाते, इस प्रकार, घर का कार्य कैसे चलेगा? स्त्री की बार-बार इस तरह की बातें सुन कर वररुचि ने सोचा-'जब तक मन्त्री राजा से कुछ न कहेगा, तब तक राजा कुछ भी न देगा.।' यह सोच कर वह शकटार मन्त्री के घर गया और उसकी स्त्री की प्रशंसा करने लगा । स्त्री ने पूछा-"पण्डितराज ! आज यहाँ आप के आने का क्या प्रयोजन है ?" वररुचि ने उसके आगे सारी बात कह दी। स्त्री ने सब सुन कर कहा-'अच्छा, आज मन्त्री जी से मैं इस विषय में कहँगी।" तत्पश्चात वररुचि वहाँ से चला गया। सायं काल शकटार की स्त्री ने उसे कहा-"स्वामिन् ! वररुचि प्रतिदिन एक सौ आठ नये - इलोको की रचना करके राजा की स्तुति करता है, क्या वे इलोक आप को अच्छे नहीं लगते ?" उसने उत्तर में कहा-"मुझे अच्छे लगते हैं।" तब स्त्री ने कहा-"फिर आप पण्डित जी की प्रशंसा क्यों नहीं करते ?" उत्तर में मन्त्री बोला-"वह मिथ्यात्वी है, अतः मैं उसकी प्रशंसा नहीं करता।" स्त्री ने पुनः कहा-"नाथ ! यदि आप के कहने मात्र से किसी दीन का भला हो जाए तो इसमें हानि की कौन-सी बात है ?" "अच्छा, कल देखा जायेगा।" मन्त्री ने उत्तर दिया। दूसरे दिन नित्य की भाँति वररुचि ने एक सौ आठ श्लोकों द्वारा राजा की स्तुति की। राजा ने मन्त्री की ओर देखा । मन्त्री ने कहा- "सुभाषित हैं।" ऐसा कहने पर राजा ने पंडित जी को एक सौ आठ सुवर्ण मुद्राएँ दी और वह हर्षित होता हुआ अपने घर वापिस आगया। वररुचि के चले जाने पर, मन्त्री ने राजा से पूछा-"आज आप ने मोहरें क्यों दी?" राजा ने कहा-“वह प्रतिदिन नवीन श्लोक बना कर लाता है, और आज तुमने उसकी प्रशंसा की, इस कारण उसे पारितोषिक रूप में, मैने मोहरें दे दीं।"
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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