________________
२०२
नन्द्रीसूत्रम्
आदेश दिया। पुत्र ने माता का दुश्चरित्र सुना तो उसे क्रोध आया, उसे यह बात असह्य थी। राजकुमार ने माता को समझाने के लिये उपाय सोचा और वह एक कौआ और कोयल को पकड़ कर लाया । एक दिन अन्तःपुर में जाकर कहने लगा-"कि इन पक्षियों के समान जो वर्णशंकरत्व करेगा, मैं उसे अवश्य दण्ड दूंगा।" कुमार की बात सुन कर रानी से दीर्घपृष्ठ ने कहा- "यह कुमार जो कुछ कह रहा है, वह हमें लक्ष्य कर कहता है, मुझे कौआ और आप को कोयल बनाया है। यह हमें अवश्य दण्डित करेगा।" रानी ने कहा-"यह बालक है, इस की बात का ध्यान नहीं करना चाहिए।"
किसी दिन राजकुसार ने श्रेष्ठ हस्तिनी के साथ निकृष्ट हाथी को देखा, रानी और दीर्घपृष्ठ को लक्ष्य कर मृत्यु सूचक शब्द कहे । एक बार कुमारं एक हंसनी और बगुले को पकड़ लाया और अन्तःपुर में जाकर तार स्वर में कहने लगा-"जो भी इनके सदृश रमण करेगा, उसे मैं मृत्यु दण्ड दूंगा।" कुमार के वचनों को सुन कर दीर्घपृष्ठ ने रानी से कहा- "देवी ! यह कुमार जो कह रहा है, वह साभि प्राय है, बड़ा होकर अवश्य हमें दण्डित करेगा। नीति के अनुसार विषवृक्ष को पनपने नहीं देना चाहिए।" रानी ने भी समर्थन कर दिया। वे विचारने लगे कि ऐसा उपाय हो जिससे अपना कार्य सिद्ध हो जाए और लोक निन्दा भी न हो। यह विचार कर राजकुमार का विवाह करने का निर्णय किया और कुमार के निवास के लिये लाक्षागृह निर्माण करने का निश्चय किया तथा जब कुमार अपनी पत्नी सहित उस लाक्षागृह में सोने के लिये जायें तो उसमें आग लगा दी जाए, जिससे मार्ग निष्कण्टक हो जाए। कामान्ध रानी ने दीर्घपृष्ठ की बात को मान कर लाक्षागृह बनवाया और पुष्पचूल की कन्या से कुमार का विवाह कर दिया।
__ मन्त्री धन को रानी और दीर्घपृष्ठ के षड्यन्त्र का पता चल गया। वह दीर्घपृष्ठ के पास जाकर कहने लगा-"स्वामिन् । मैं अब बूढ़ा हो गया हूं, शेष जीवन भगवद्भक्ति में व्यतीत करने की भावना है। मेरा पुत्र वरधनु अब सर्व प्रकार से योग्य हो गया है। अब आपकी सेवा वही करेगा। यह निवेदन कर मन्त्री वहां से चला गया और गङ्गा के किनारे दान शाला खोल कर दान देने लगा। दान शाला के . बहाने उसने विश्वस्त पुरुषों से लाक्षागृह तक सुरङ्ग खुदवाई और साथ ही राजा पुष्पचूल को भी समाचार दे दिया। लाक्षागृह और विवाह सम्पन्न होने पर रात्रि के समय राजकुमार को उस घर में भेजा गया तदनन्तर अर्ध रात्रि के समय उस घर में आग लगा दी गयी, जो शीघ्र ही चारों ओर फैलने लगी। कुमार ब्रह्मदत्त ने जब आग को देखा तो वरधनु मंत्री से पूछा-"यह क्या बात है ?" वरधनु ने रानी और दीर्घपृष्ठ का सारा षड्यंत्र कुमार को बतला दिया और कहा-"कुमार ! आप घबरायें नहीं, मेरे पिता ने इस लाक्षागृह के नीचे सुरंग खुदवाई है जो गंगा के किनारे पर निकलती है, वहां दो घोड़े तैयार हैं जो आपको वहां से अभीष्ट स्थान पर ले जायेंगे। यह कह कर वे वहां से निकल गये और घोड़ों पर सवार होकर अनेक देशों में भ्रमण करने लगे। अपने बुद्धिबल से वीरता के अनेक कार्य किये और कई राज कन्याओं से विवाह किये तथा षट्खण्ड जीत कर चक्रवर्ती बने । धनु मन्त्री ने पारिणामिकी बुद्धि से लाक्षागृह के नीचे सुरंग बनवा कर राजकुमार ब्रह्मदत्त की रक्षा की।
१०. क्षपक-किसी समय एक तपस्वी साधु पारणे के दिन भिक्षा के लिये गया। लौटते समय मार्ग में उसके पैर के नीचे एक मेंढक आया और दब कर मर गया। शिष्य ने यह देख कर गुरु से शुद्धि करने के लिये प्रार्थना की किन्तु शिष्य की, बात पर तपस्वी ने ध्यान न दिया। सायंकाल प्रतिक्रमण के समय
।