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नन्दीसूत्रम्
पदार्थ-अणुमान-अनुमान हेउ-हेतु दिटुंत-दृष्टान्त से साहिया–कार्य को सिद्ध करने वाली, वय-आयु के विवाग-विपाक के परिणामा-परिणाम से हिय-लोकहित निस्सेयस-मोक्ष फलवईफल देने वाली, परिणामिया-पारिणामिकी नाम-नामक बुद्धी-बुद्धि कही गयी है।
भावार्थ-अनुमान, हेतु और दृष्टान्त से कार्य को सिद्ध करने वाली, आयु के परिपक्व होने से पुष्ट, लोकहित करने वाली तथा कल्याण-मोक्षरूप फल वाली बुद्धि पारिणामकी कही गयी है।
४. पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण मूलम्-२. अभए सिट्ठी कुमारे, देवी उदियोदए हवइ राया। ___ साहू य नंदिसेणे, धणदत्त सावग अमच्चे ॥७॥ छाया-२. अभयः श्रेष्ठकुमारी, देवो उदितोदयो भवति राजा ।
साधुश्च नन्दिषेणः, धनदत्तः श्रावकोऽमात्यः ॥७॥ मूलम्—३. खमए अमच्चपुत्ते, चाणक्के चेव थूलभद्दे य ।
नासिक्क सुंदरीनंदे, वइरे परिणामिया बुद्धीए ॥८॥ ४. चलणाहण आमंडे, मणी य सप्पे य खग्गि।
थूभिदे परिणामिय-बुद्धीए, एवमाई उदाहरणा ॥१॥
से तं असुयनिस्सियं । छाया- ३. क्षपकोऽमात्यपुत्रः चाणक्यश्चैव स्थूलभद्रश्च ।
नासिक्ये सुन्दरीनन्दः, वज्रः पारिणामिकी-बुद्धया ॥१०॥ ४. चलनाहत आमलके, मणिश्च सर्पश्च खङ्गि-स्तूपभेदः ।
पारिणामिक्या बुद्धया, एवमादीनि उदाहरणानि ॥८१॥ तदेतदश्रुतनिश्रितम् ।