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________________ पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण १६७ १. अभयकुमार-मालव देश में उज्जयिनी नाम की एक नगरी थी। राजा चण्डप्रद्योतन वहाँ राज्य करता था। एक बार उसने राजगृह नगर में महाराजा श्रेणिक को दूत द्वारा कहला भेजा कि यदि अपना और राज्य का कल्याण चाहते हो तो प्रसिद्ध बंकचूड़ हार, सींचानकगन्ध हस्ती, अभयकुमार और चेलना रानी को मेरे पास शीघ्र भेज दो। चण्डप्रद्योतन का यह सन्देश लेकर दूत राजगृह में पहुँचा और राजा श्रेणिक की सभा में उपस्थित होकर सन्देश को सुनाया। महाराजा श्रेणिक यह सुन कर अत्यन्त क्रुद्ध हुए और दूत से कहा-क्योंकि दूत अवध्य होता है, इसलिए तुम्हें क्षमा करता हूँ। तथा तुम अपने राजा से जाकर कहना कि "यदि वह अपनी कुशलता चाहता है तो अग्निरथ, अनिलगिरि हाथी, वनजंघ दूत तथा शिवादेवी रानी इन को शीघ्र मेरे यहाँ पर भेज दो।" महाराजा श्रेणिक की आज्ञा दूत ने चण्डप्रद्योतन को जाकर सुनायी। इसको सुनकर राजा बहुत क्रुद्ध हुआ और अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजगृह पर बड़ी भारी सेना से चढ़ाई कर दी। राजगृह नगर के बाहिर जाकर घेरा डाल दिया। श्रेणिक को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने भी अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयारी की आज्ञा दे दी। युद्ध की तैयारी का समाचार सुनकर अभयकुमार अपने पिता श्रेणिक के पास आए और निवेदन किया-"महाराज ! आप युद्ध की तैयारी का कष्ट न कीजिए। मैं ऐसा उपाय करूंगा कि जिससे मौसा चण्डप्रेद्योतन स्वयं प्रातः काल ही पीछे लौट जायेगा। राजा ने अभयकुमार की बात स्वीकार कर ली। रात्रि को अभयकुमार अपने साथ पर्याप्त धन लेकर राजभवन से निकला और नगर के बाहिर जहां पर चण्डप्रद्योतन के सेनापति और अधिकारी वर्ग पडाव डाले हुए थे, उनके पीछे वह धन गड़वा दिया। और इसके पश्चात् वह राजा चण्डप्रद्योतन के पास पहुंचा। प्रणाम करके बोला-"मौसाजी ! आप और पिता जी मेरे लिए समादरणीय हैं। अतः आप से हित की एकबात कहना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता कि किसी के साथ धोखा हो।" राजा चण्डप्रद्योतन ने उत्सुकता से पूछा-"वत्स ! मेरे साथ क्या धोखा होने वाला है ? शीघ्र बताओ? अभयकुमार ने उत्तर दिया-"पिता जी ने आप के बड़े-बड़े सेनापतियों और अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने वश कर लिया है और प्रातःकाल होते ही आपको बन्दी बनाकर पिता जी के पास ले जायेंगे। यदि आपको विश्वास न हो तो उनके पास आया रिश्वत का धन गड़ा हुआ दिखा सकता है। यह कह कर अभयकुमार ने चण्डप्रद्योतन को अपने साथ ले जाकर धन दिखा दिया। यह देखकर राजा को विश्वास हो गया और वह शीघ्रता से रातों-रात घोड़े पर सवार हो कर उज्जयिनी में वापिस लौट गया। प्रातःकाल होते ही जब सेनापति और मुख्याधिकारियों को यह ज्ञात हुआ कि राजा भागकर उज्जयिनी चला गया है तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ । 'नायक के बिना सेना लड़ नहीं सकती' यह सोचकर सेना समेत सभी उज्जयिनी वापिस लौट आए। वहाँ जाकर जब वे राजा से मिलने गए तो उसने धोखेवाज़ समझकर उनसे मिलने से इन्कार कर दिया। बहुत प्रार्थना और अनुनय-विनय करने पर राजा ने उन्हें मिलने की आज्ञा दी। राजा से मिलने पर अधिकारियों ने राजा से लौटने का कारण पूछा। राजा ने सारी बात उन्हें सुनायी । सुन कर वे बोले ! "महाराज ! अभयकुमार बड़ा चतुर और बुद्धिमान् है, उसने आपको धोखा देकर अपना बचाव किया है, अन्य कोई ऐसी बात नहीं है।" यह सुन कर चण्डप्रद्योतन बहुत गुस्से में आगया और उन्हे आज्ञा दी कि "जो अभय कुमार को पकड़ कर मेरे पास लाएगा, मैं उसे बहुत-सा इनाम दूंगा।"
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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