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कर्मजा बुद्धि के उदाहरण
अपना उदाहरण उपस्थित हूं। यदि तुम कहो तो हाथ के इन, मूगों को मैं अधोमुख डाल दूं या ऊर्ध्वमुख अथवा पार्श्व से गिरा दूं ?" चोर यह सुन कर अधिक विस्मित हो कहने लगा-"तो, इन सबको अघोमुख डाल दो।" किसान ने भूमि पर कपड़ा फैला कर मूंग के सभी दाने अधोमुख बिखेर दिये। यह देख चोर को आश्चर्य हुआ और बार-बार किसान की कुशलता की प्रशंसा करने लगा-" अहो तुम्हारा विज्ञान इत्यादि ।" चोर ने जाते समय कहा कि “यदि मूंग अधोमुख न डाले होते तो मैंने तुझे निश्चय ही मार देना था। यह कर्षक और तस्कर की कर्मजा बुद्धि का उदाहरण है।
३. कौलिक-जुलाहा-जुलाहा अपने हाथ में सूत के तन्तुओं को लेकर ही बता देता है कि अमुक परिमाण कण्डों से कपड़ा तैयार हो जायेगा ।
४. डोव-कडच्छी-बढ़ई-तरखान जानता है कि इस कड़च्छी में कितनी वस्तु आ सकेगी।
५. मोती-मणिकार मोतियों को इस प्रकार उच्छालता है कि यत्नपूर्वक नीचे रखे हुए सुअर के। बालों में आकर पिरोये जाते हैं।
६. घृत-घृत के बेचने वाला इतना विशेषज्ञ हो जाता कि यदि चाहो तो शकट पर बैठा-वैठा भी नीचे कुण्डियों में घी डाल सकता है।
७. प्लवक-नट अपने कृत्य में इतना सिद्ध हस्त हो जाता है कि रस्सी पर कई प्रकार के खेल दिखाता है।
. ८. तुण्णग-दर्जी–दर्जी सीने में इतना अभ्यस्त हो जाता है कि पता नहीं चलता कि सीवन कहाँ है ?
१. बडई-बढई अपने कर्तव्य में इतना प्रवीण होता है कि अमुक मकान, रथ आदि में कितनी लकड़ी लगेगी।
१०. अापूपिक-हलवाई बिना माप के ही किसी मिष्टान्न को बनाने में कितना द्रव्य लगेगा, . जान लेता है।
११. घट-कुम्हार प्रतिदिन के अभ्यास से जो वस्तु निर्माण करनी हो, उतनी ही मिट्टी का पिंड उठाता है.। .
१२. चित्रकार-चित्रकार चित्र की भूमि को बिना मापे ही तत्परिमाण स्थल का अनुमान कर तूलिका में भी अमुक परिमाण रंग लगाता है, जिससे अभीष्ट चिन्ह या आकार बन जाये ।
ऊपर लिखे गये १२ उदाहरण कर्म से उत्पन्न बुद्धि के हैं।
४. पारिणामिको बुद्धि का लक्षणा मूलम्-१. अणुमान-हेउ-दिळेंत साहिया, वय-विवाग-परिणामा।
हिय-निस्सेयस फलंवई, बुद्धी परिणामिया नाम ॥७॥ छाया-१. अनुमान-हेतु-दृष्टान्त-साधिका, वयो-विपाकपरिणामा ।।
हित-निःश्रेयसफलवती, बुद्धिः पारिणामिकी नाम ॥७॥