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श्रौत्पत्तिकी बुद्धि
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११. गोलक-लाक्षा की गोली—किसी बालक ने खेलते हुए, कौतुहलवश लाख की एक गोली नाक में डाल ली। गोली अन्दर जाकर श्वास की नाली में फंस गई और बच्चे को सांस लेने में रुकावट के कारण वेदना होने लगी। यह देख बच्चे के मां-बाप बहुत घबराये कि क्या करें। वे उस बालक को दिखाने के लिए सुनार को ले आए। सुनार ने अपनी सूक्ष्म बुद्धि से एक बारीक लौह शलाका के अग्र भाग को गर्म कर के सावधानी से नाक में डाला, गर्म शलाका के साथ वह लाक्षा की गोली चिपक गई और खेंचकर उसे बाहिर निकाल लिया । यह सुवर्णकार की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
१२. खंभ-स्तम्भ-किसी राजा को अत्यन्त बुद्धिशाली मन्त्री की आवश्यकता थी। राजा ने इस उद्देश्य से एक बहुत विस्तीर्ण और गहरे तालाब में एक ऊँचा स्तम्भ गड़वा दिया और उसकी रक्षा-देखभाल के लिए राज्यधिकारी नियुक्त कर दिए। राजा ने घोषणा कराई-"कि जो कोई भी किनारे पर खड़ा होकर इस स्तम्भ को रस्सी से बान्ध देगा, उसे महाराज एक लाख रुपया इनाम का देंगे।
यह घोषणा एक बुद्धिमान व्यक्ति ने सुन कर उपस्थित जनता के समक्ष तालाब के एक किनारे पर एक कील गाड़ दी और उसके साथ रस्सी का किनारा बांध कर तालाब के चारों ओर घूम गया। ऐसा करने पर खम्भा बीच में बन्ध गया, राजपुरुषों ने यह समाचार राजा को दिया। राजा उसकी बुद्धिमत्ता पर हर्षित हुआ और उस पुरुष को एक लाख रुपया इनाम देकर अपना मन्त्री स्थापित कर दिया। यह उस व्यक्ति की औत्पत्तिकी बुद्धि पर खंभ का उदाहरण है। . १३. क्षुल्लक-बहुत समय पहिले की बात है, किसी नगर में एक परिवाजिका रहा करती थी। वह बड़ी चतुर और कला-कौशल में निपुण थी। एक बार वह राजसभा में गई और राजा से कहा"महाराज ! ऐसा कोई कार्य नहीं जो अन्य करते हों और मैं न कर सकूँ !" राजा ने परिवाजिका की बात को सुना और नगर में इस प्रकार की घोषणा करवा दी कि यदि कोई पुरुष ऐसा हो जो उसे जीत ले, तो वह राज सभा में आए, महाराज उसे सम्मानित करेंगे ।
यह घोषणा नगर में भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए किसी नवयुवक क्षुल्लक ने सुनी और स्वयं राजसभा में गया। महाराज से कहा- "मैं इस परिव्राजिका को अवश्य परास्त कर सकता हूं।" प्रतियोगिता का समय निश्चित कर दिया गया और परिव्राजिका को सूचना दे दी गई।
निश्चित समय पर राजसभा में साधारण जनता और राज्याधिकारियों के उपस्थित हो जाने पर परिव्राजिका और क्षुल्लक दोनों आ गये । परिव्राजिका अवज्ञापूर्ण और अभिमान युक्त मुंह बनाती हुई उपस्थित जनता के समक्ष बोली-"मुझे इस मुंडित से किस प्रकार की प्रतियोगिता करनी है ?" परिव्राजिका की धूर्तता को समझता हुआ क्षुल्लक बोला-"जो मैं करूँ वह तुम भी करती जाओ" इतना. कहकर उसने अपना परिधान उतार फेंका और बिल्कुल नग्न हो गया। परिव्राजिका ऐसा करने में असमर्थ थी। दूसरी प्रतियोगिता में क्षुल्लक ने लघुशंका इस प्रकार से की कि उससे कमल की आकृति बन गई । परिवाजिका यह भी न कर सकी। जनता और राजसभा में तिरस्कृत और लज्जित हो कर परिव्राजिका अपना मुंह लेकर चलती बनी । क्षुल्लक को राजा ने सम्मान पूर्वक विसजित किया। यह क्षुल्लक की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
१४. मार्ग-बहुत समय की बात है, एक पुरुष अपनी स्त्री के साथ रथ में बैठकर किसी अन्य ग्राम को जा रहा था । बहुत दूर निकल जाने पर मार्ग में स्त्री को शौच की बाधा हुई। रथ को ठहरा कर उसकी