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नन्दीसूत्रम्
"कि तुमने कल क्या खाना खाया था ?" उसने उत्तर दिया-"मैंने और मेरी स्त्री ने तिल के लड्डू खाये थे।" इसी प्रकार धूर्त से भी पूछा कि-"तू ने क्या खाया था ?" उसने कुछ भिन्न उत्तर दिया। न्यायाधीश ने स्त्री और धूर्त को विरेचन देकर जांच की तो स्त्री के मल में तिल देखे । परन्तु धूर्त के नहीं। इस आधार पर न्यायाधीश ने उसके असली पति को स्त्री सौंप दी और धूर्त को यथोचित दण्ड देकर अपनी औत्पत्तिकी बुद्धि का परिचय दिया। . .. गज-एक समय की बात है कि किसी राजा को एक अति बुद्धि-सम्पन्न मन्त्री की आवश्यकता थी । उसने अतिशय मेधावी व्यक्ति की खोज करने के लिए एक बलवान हाथी को चौराहे पर बांध दिया और घोषणा कराई कि "जो व्यक्ति इस हाथी को तोल देगा उसे राजा बहुत बड़ी वृत्ति देगा। इस घोषणा को सुन कर एक व्यक्ति ने सरोवर में नावा डाल कर उसमें हाथी को ले जा कर चढ़ाया। • उस हाथी के भार से नावा जितनी पानी में डूबी, वहां पर उस पुरुष ने चिह्न लगा दिया। फिर हाथी को उस नावा से निकाल कर उसमें इतने ही पत्थर डाले कि पूर्व चिह्नित स्थान तक नौका पानी में डूब गई। फिर वे पत्थर निकाले गये, उन्हें तोला गया, और उस व्यक्ति ने राजा से निवेदन किया"महाराज ! अमुक पल परिमाण हाथी का भार है।" राजा उसकी बुद्धि की विलक्षणता से बहुत प्रसन्न हुआ और उसे अपनी मन्त्रीपरिषत् का मूर्धन्य अर्थात् प्रधान मन्त्री नियुक्त कर दिया। यह उस पुरुष की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
१०.घयण-भाण्ड-किसी राजा के दरबार में एक भाण्ड रहा करता था, राजा उससे प्रेम करता था, इस कारण वह राजा का मुंहलग बन गया था। राजा उस मुंहलग भाण्ड के समक्ष सदैव अपनी महारानी की प्रशंसा किया करता था। वह सदा रानीके गुणों का व्याख्यान करता कि "मेरी राणी बड़ी आज्ञाकारीणी है।" परन्तु भाण्ड राजा से कहता-"महाराज! यह रानी स्वार्थवश ऐसा करती है। यदि आपको विश्वास न हो तो परीक्षा कर लीजिये ?
राजा ने भाण्ड के कथनानुसार एक दिन रानी से कहा-"देवी ! मेरी इच्छा है कि मैं अन्य शादी कराऊं और उसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हो, उसे राज्याभिषेक से सन्मानित करूं।" रानी ने उत्तर दिया-"महाराज ! दूसरा विवाह आप भले ही कर सकते हैं, किन्तु राज्याधिकारी परम्परागत पहिला ही राजकुमार हो सकता है।" राजा भाण्ड की बात को ठीक जान कर रानी के समक्ष मुस्करा दिया। रानी ने मुस्कराने का कारण पूछा तो राजा और हंसा। रानी के आग्रह पर राजा ने भाण्ड की बात बता दी। रानी यह सुनकर बहुत क्रोधावेश में आ गई और राजा से भाण्ड को देश परित्याग की आज्ञा दिलाई।
. देश परित्याग की आज्ञा प्राप्त कर भाण्ड ने सोचा कि मेरी बात रानी को बता दी गई है। अतः इस प्रकार की आज्ञा रानी ने दी है। तत्पश्चात् /भाण्ड ने बहुत से जूतों का एक गठड़ सिर पर उठाया और रानी जी के भवन में गया। जाकर पहरेदार से आज्ञा ली और दर्शनार्थ रानी के पास पहुँचा। रानी जी ने पूछा - "यह सिर पर क्या उठा रखा है ?" उत्तर में भाण्ड बोला-"देवीजी ! मेरे सिर पर जूतों के जोड़े हैं, इनको पहन कर जिन-जिन देशों में जा सकुंगा, वहाँ तक आप का अपयशः करता जाऊंगा।" भाण्ड से अपने अपयश की बात सुन कर रानी ने देश परित्याग के आदेश को वापिस ले लिया और भाण्ड पूर्ववत् ही आनन्द से रहने लगा। यह भाण्ड की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।