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________________ १७४ नन्दीसूत्रम् भी द्वार में नहीं जाता। इस लिए मैं प्रतिज्ञा से मुक्त हो गया हूं। यह बात पास में खड़े हुए लोगोंने और साक्षियों ने मान ली और प्रतिद्वन्द्वी धूर्त को हरा दिया। यह नागरिक घूर्त की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। ३. वृक्ष एक समय की वार्ता है कि बहुत से यात्री किसी स्थान पर जा रहे थे। मार्ग में आम के वृक्ष फलों से लदे हुए देख कर वहीं पर रुक गये । पके हुये आमों को देख कर उन्हें उतारना चाहा । परन्तु वृक्षा पर बन्दर बैठे हुये थे, उन के डर से ऊपर चढ़ना अशक्य था। बन्दर उन की इच्छा पूर्ति के मार्ग में बाधक थे । पथिक आम लेने का उपाय सोचने लगे। बुद्धि का प्रयोग करते हुए उन्होंने बन्दरों की ओर पत्थर फैकने आरम्भ किए। बन्दर स्वभाव से चंचल और नकल करने वाला होता है। अतः बन्दरों ने भी पथिकों के पत्थरों का आमों से उत्तर दिया। इस प्रकार करने से पथिकों की अभिलाशा पूर्ण हो गई। फल प्राप्त करने के लिये यह पथिकों की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। ४. खुड्ग--(अंगूठी) बहुत समय पहिले की बात है। मगध देश में राजगृह नामक एक बड़ा सुन्दर और धन-धान्य से स्मृद्ध विशाल नगर था। वहां का राजा प्रसेनजित अति शक्तिशाली था, जिस ने अपने शत्रुओं को अपनी बुद्धि और न्याय प्रियता से जीत लिया था। उस प्रतापी राजा के बहुत से पुत्र थे । उन सभी पुत्रों में श्रेणिक नामक राजकुमार नृप गुणों से सम्पन्न, अति सुन्दर और राजा का प्रेम पात्र था। अन्य राजकुमार उसे कहीं ईर्ष्यावश मार न डालें, अत एव राजा प्रकट रूप में न तो उसे कुछ देता और न. ही स्नेह करता। राजकुमार बुद्धि सम्पन्न था, परन्तु बालक होने के कारण अपने पिता की ओर से किसी प्रकार का सन्मान प्राप्त न होने से रोष वश घर छोड़ और पिता को बिना सूचित किए चुप-चाप किसी अन्य देश में चला गया। चलते-चलते वह किसी देश में वेन्नातट नामक नगर में पहुंच गया। उस नगर में एक व्यापारी की दुकान पर पहुंचा, जिस का कि सर्व वैभव और व्यापार नष्ट हो गया था। वह वहाँ . जाकर एक ओर बैठ गया और रात्रि वहाँ पर ही व्यतीत की। उस दुकान के स्वामी ने उसी रात स्वप्न में अपनी कन्या का विवाह एक रत्नाकर से होते देखा। अगले दिन सेठ जब अपनी दूकान पर आया तो श्रेणिक के पुण्य प्रभाव से बहुत पहिले का. संचित किया . हुआ करियाना जिस को कोई पूछता तक न था, बहुत ऊँचे भाव पर बिका और सेठ को उस से महान लाभ हआ। विदेशी व्यापारियों के लाए हुए बहुमूल्य रत्न भी सेठ जी को अल्प मूल्य में प्राप्त हो गये । इस प्रकार अचिन्त्य लाभ देख कर सेठ के मन में विचार आया कि यह महान लाभ इस दुकान में मेरे पास बैठे हुए लड़के के पुण्य से ही हुआ, अन्य कोई कारण नहीं। यह भाग्य शाली कितना सुन्दर और तेजस्वी है, निश्चय ही यह इस महान आत्मा के पुण्य का प्रभाव है। सेठ सोचने लगा कि रात्रि में जिस रत्नाकर के साथ अपनी कन्या का पाणिग्रहण का स्वप्न में ने देखा था, यही वह रत्नाकर है, अन्य कोई नहीं। तब सेठ ने पास बैठे हुए श्रेणिक को हाथ जोड़ कर विनम्र होकर प्रार्थना की-"आर्य महानुभाग ! आप किस घर में अतिथि बन कर आए हैं ?" श्रेणिक ने प्रिय और कोमल शब्दों में उत्तर दिया-श्रीमान जी ! मैं आपका ही अतिथि है।" इस मनोज्ञ उत्तर को सुन कर सेठ का हृदय कमल खिल उठा और प्रसन्नता में विभोर, बहुमान पूर्वक उसे अपने घर ले गया और अच्छे से अच्छे वस्त्र और भोजन आदि से उस का सत्कार किया। श्रेणिक वहाँ पर आनन्द पूर्वक रहने लगा। उस के पुण्य से सेठ की धन-सम्पत्ति, व्यापार और प्रतिष्ठा दिनोदिन बढ़ती चली
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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