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औत्पत्तिकी बुद्धि
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रति क्रीड़ा करते हुए देखा और उससे भी किचिन्मात्र भावना विकृत हो गई। वस्तुतः तुम्हारे जनक सकल जगत्प्रसिद्ध एक ही पिता हैं ?" यह सुनकर राजा रोहक की अलौकिक बुद्धि का चमत्कार देखकर आश्चर्यचकित हुआ। माता को प्रणाम कर राजा अपने महल में लौट आया। उसने रोहक को मुख्य मंत्री के पद पर नियुक्त किया। ये उपर्युक्त चौदह उदाहरण रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि के हैं ।
१-भरतशिला का उदाहरण पहिले दिया जा चुका है।
२. पणित-(प्रतिज्ञा शत) किसी समय कोई ग्रामीण किसान अपने गांव से ककड़ियां लेकर नगर में बेचने के लिए गया। नगर के द्वार पर पहुंचते ही एक धूर्त नागरिक मिला। ग्रामीण को भोला-भाला समझ कर उसने उसे ठगने का विचार किया। यह विचार कर नागरिकधूर्त ने ग्रामीण से कहा-"भाई! यदि मैं तुम्हारी सब ककड़ियां खा जाऊं तो तुम मुझे क्या दोगे?" ग्रामीण ने कहा-"यदि तुम सब ककड़ियां खा जाओ तो मैं तुम्हें इस द्वार में न आ सके, ऐसा लड्डू दूंगा।" दोनों में यह शर्त निश्चित हो गयी और कुछ अन्य व्यक्तियों को साक्षी बना लिया।
इसके अनन्तर उस धूर्त नागरिक ने उन सब ककड़ियों को थोड़ा-थोड़ा खा कर जूठा करके रख दिया और प्रामीण से बोला--"ले भाई ! तेरी सारी ककड़ियां खा ली हैं, इसलिए शर्त के अनुसार मुझे लड्डू दे।" ग्रामीण ने उत्तर दिया-"तूने ककड़ियां कहां खाई हैं ? ये तो सारी उसी प्रकार पड़ी हुई हैं, मैं कैसे लड्डू दूं ?" नागरिक बोला-"मैंने सारी खा ली हैं। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो विश्वास करा देता हं।" ग्रामीण ने कहा-'अच्छा बताओ कैसे खा ली हैं।"
तत्पश्चात धूर्त के कथानानुसार उन दोनों ने ककड़ियाँ बाज़ार में बेचने के लिए रख दीं। ग्राहक ककड़ियां खरीदने के लिए आने लगे। वे उन ककड़ियों को देख कर कहने लगे-'ये तो सारी खायी हुयी हैं, हम इन्हें कैसे लें ?" लोगों के इस प्रकार कहने पर धूर्त ने उस ग्रामीण को और साक्षियों को विश्वास दिला दिया। बेचारा ग्रामीण घबरा गया और सोचने लगा-हाय ! अब मैं प्रतिज्ञा के अनुसार इतना बड़ा लड्डू इसको कैसे दूं? वह भयभीत होकर नम्रतो से धूर्त को एक रुपया देने लगा। परन्तु वह उसे स्वीकार नहीं करता । तब उसे दो रुपये दिये, फिर भी वह नहीं मानता है। अन्त में ग्रामीण ने कहासौ रुपया ले ले, मेरा पीछा छोड़ । परन्तु, धूर्त तो प्रतिज्ञानुसार उतना बड़ा लड्डू ही लेने पर उतारु था।
जब वह धूर्त किसी प्रकार न माना तो ग्रामीण ने सोचा कि हाथी को हाथी से लड़ाना चाहिए और धूर्त से धूर्त को, अन्यथा यह मानेगा नहीं। इस धूर्त नागरिक ने मुझे बातों में फंसाकर मेरे साथ ठगी की है, इसलिए इस जैसा ही कोई इसे ठीक कर सकता है। यह विचार कर धूर्त से कुछ दिनों बाद लड्डू देने के लिए कहा और स्वयं किसी अन्य धूर्त को ढूंढने लगा।
ढूण्डते २ उसे एक अन्य धूर्त मिल गया और उससे सारी स्थिति स्पष्ट की। उसने उस का उपाय बता दिया। ग्रामीण बाजार में हलवाई की दुकान पर गया, एक लड्डु लेकर साक्षियों और धूर्त को बुला लाया। ग्रामीण ने नगर के द्वार के बाहिर खूटी से लड्डू को बान्ध दिया और सबके सामने लड्डू को बुलाने लगा-"अरे लडडू ! चलो ! अरे लड्डू चलो !" परन्तु लड्डू कहाँ चलने वाला था ? तब ग्रामीण ने साक्षियों को सम्बोधित करते हुए कहा-"भाइयो ! मैं ने आप लोगों के सामने यह प्रतिज्ञा की थी कि यदि मैं हार गया तो ऐसा लड्डू दूंगा जो इस द्वार से न निकल सके। आप देखें कि यह