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________________ : 27 नन्दीसूत्रम् या शिखा ?" रोहक की इस बात को सुनकर राजा भी संशयशील हुआ, उसने रोहक से पूछा-"अच्छा तुमने इस विषय में क्या निर्णय किया है ?" रोहक ने उत्तर दिया-"देव ! जब तक शिखा का भाग सूख नहीं जाता तब तक दोनों तुल्य होते हैं।" राजा ने अनुभवी व्यक्तियों से पूछा-क्या यह बात ठीक है ? उन सबने रोहक का समर्थन किया। रोहक पुनः सो गया। १३ खाडहिला (गिलहरी)-रात का चौथा पहर चल रहा था। राजा ने पुनः सम्बोधित करके कहा-"रोहक !क्या जागता है या सोता है ?" रोहक ने कहा- "स्वामिन् ! मैं भाग रहा हूं।" राजा ने प्रश्न किया- "क्या सोच रहा है ? जिस कारण तुझे नींद नहीं आ रही है ?" रोहक बोला-मैं यह सोच रहा हूं कि गिलहरी का शरीर जितना बड़ा होता है, उसकी पूंछ क्या उतनी ही बड़ी होती है या न्यूनाधिक ?" रोहक की बात सुनकर राजा स्वयं सोच में पड़ गया । जब वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका, तब उसने रोहक से पूछा-"तू ने इसका क्या निर्णय किया ?" रोहक ने कहा-"देव ! दोनों बराबर होते हैं ।" यह कह कर रोहक पुनः सो गया। १४ पांच पिता-रात बीत जाने पर सूर्योदय से पहले जब मंगल वाद्य बजने लगे तब राजा जागरुक हुआ। उसने रोहक को आवाज़ दी, किन्तु रोहक गाढ़ निद्रा में सो रहा था। उत्तर न मिलने पर राजा ने अपनी छड़ी से उसे कुछ स्पर्श किया। रोहक झट जाग उठा। राजा ने पूछा-"अब क्या सोच रहा है ?" रोहक ने कहा- "मैं यह सोच रहा हूं कि आपके कितने पिता हैं ?" रोहक की इस अद्युतपूर्व बात को सुनकर राजा लज्जावश कुछ क्षण मौन रहा । उत्तर न मिलने से राजा ने रोहक से पूछा"अच्छा तो बताओ, मैं कितनों का पुत्र हूं?" रोहक ने कहा - "आप पांच से पैदा हुए हैं।" राजा ने पूछा-"किन-किन से ?" रोहक ने कहा-“एक त. वैश्रवण से । क्योंकि आप कुबेर के समान उदार चित्त हैं, दान शक्ति आप में सबसे बढ़कर है।" "दूसरे चण्डाल से । क्योंकि वैरी समूह के प्रति आप चण्डाल के समान क्रूर हैं।" "तीसरे धोबी से । क्योंकि जैसे धोबी गीले कपड़े को खूब अच्छी तरह निचोड़ कर सारा पानी निकाल देता है, उसी तरह आप भी देश द्रोही एवं राज द्रोहियों का सर्वस्व हर लेते हैं।" "चौये बिच्छू से। क्योंकि जैसे बिच्छू डंक मार कर दूसरों को पीड़ा पहुंचाता है, वैसे ही निद्राधीन मुझ बालक को छड़ी के अग्रभाग से जगाकर विच्छू के समान कप दिया है।" "पांचवें अपने पिता से । क्योंकि आप अपने पिता के समान ही न्यायपूर्वक प्रजा का पालन कर रहे हैं।" रोहक की उपर्युक्त वार्ता सुनकर राजा अवाक् रह गया। प्रातः शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर राजा माता को प्रणाम करने गया। प्रणाम करने के पश्चात् रोहक की कही हुई सारी बात माता से कह दी और पूछा-“यह बात कहां तक सत्य है ?" माता ने उत्तर दिया- "पुत्र ! विकारी इच्छा से देखना ही यदि तेरे संस्कार का कारण हो, तो ऐसा अवश्य हुआ है। जब तू गर्भ में था, तब मैं एक दिन कुबेर की पूजा करने गई थी। उसकी सुन्दर मूर्ति को देखकर, तथा वापिस लौटते हुए मार्ग में धोबी और चण्डाल युवक को देखकर मेरी भावना विकृत हो गई थी। घर आने पर एक जगह किसी बहुत बड़े बिच्छू युगल को
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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