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________________ औत्पत्तिकी बुद्धि १७५ गयी। इस प्रकार रहते हुए कई दिन व्यतीत हो गये। सेठ ने अपनी कन्या के योग्य वर देख कर शुभ दिन, तिथि, मुहर्त, नक्षत्र आदि देखकर उसके साथ विवाह कर दिया। श्रेणिक श्वसुरगृह में अपनी पत्नी नन्दा के साथ इन्द्र और इन्द्राणी के सदृश गृहस्थ सम्बन्धि भोगों का आस्वादन करने लगा। कुछ समय पश्चात् नन्दा देवी गर्भवती हो गयी और यथाविधि गर्भ का पालन करने लगी। उधर राजकुमार श्रेणिक के बिना पता दिये चले जाने से राजा प्रसेनजित बहुत चिन्ताग्रस्त रहते थे। उन्होंने उस की बहुत खोज की पर सफलता न मिली। अन्त में बहुत समय के पश्चात् लोगों की श्रुति परम्परा से सेठ की प्रसिद्धि सुनी और वेन्नातट में, अपने सैनिक श्रेणिक को बुलाने के लिए भेजे। उन्होंने वहाँ जाकर श्रेणिक से प्रार्थना की-"महाराज प्रसेनजित आप के वियोग से बहुत दुःखी हैं। आप शीघ्र ही राजगृह में पधारें।" श्रेणिक ने राजपुरुषों की प्रार्थना को स्वीकार कर के राजगृह जाने का संकल्प किया और अपनी पत्नी नन्दा को पूछकर अपना परिचय कहीं लिख कर राजगृह की ओर प्रस्थान कर दिया। . देव लोक से च्यव कर नन्दा के गर्भ में आये हुए प्राणी के पुण्य प्रभाव से कुछ काल के पश्चात् नन्दा देवी को दौहृद उत्पन्न हुआ कि-"क्या ही अच्छा हो, अगर मैं एक महान हाथी पर सवार होकर जनता में धन-दान देकर अभय दान दूं।" नन्दा ने यह भावना अपने पिता से कही और पिता ने राजा ' से प्रार्थना कर अपनी पुत्री का दौहृद पूरा किया। समय बीतने पर प्रातः कालीन सूर्य के प्रतिबिम्ब सदृश दसों दिशाओं को प्रकाशित कर देने वाला पुत्र रत्न नन्दा की कुक्षि से उत्पन्न हुआ। दौहृद के अनुरूप सुन्दर बालक का जन्मोत्सव मनाया और उस का अभयकुमार नाम रखा गया। वह सुकुमार बालक नन्दन वन के कल्प-वृक्ष की भान्ति सुख पूर्वक वृद्धि पाने लगा। समय आने पर उसे पाठ शाला में भेजा गया और यथासमय शास्त्र अभ्यास तथा अन्य कलाओं का अभ्यास अच्छी तरह से किया और थोड़े ही समय में वह एक सुयोग्य विद्वान बन गया। अकस्मात् एक दिन अभयकुमार ने अपनी माता से पूछा- "मां ! मेरे पिताजी कौन हैं और कहाँ पर रहते हैं ?" बच्चे के इस प्रश्न को सुन कर माता ने आद्योपान्त सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया और पिता का लिखा हुआ परिचय भी उसे दिखाया । माता के वचन सुन कर तथा अपने पिता का लिखा परिचय पढ़कर कुमार ने जान लिया कि मेरे पिता जी राजगृह के राजा हैं। यह जानकर अभयकुमार ने माताजी से कहा-"माता जी मैं सार्थ के साथ राजगृह में जाता हूँ।" माता ने उत्तर में कहा-"पुत्र ! - यदि तू कहे तो मैं भी वैसा ही करूँ।" तब अभयकुमार, माता और सार्थ के साथ राजगृह की ओर चल पडा। राजग्रह के बाहिर अपनी माता को छोड़कर अभयकुमार नगर में चला, ताकि वहाँ देखे कि किस प्रकार का वातावरण है ? और राजा के दर्शन कैसे हो सकते हैं। यह विचार कर वह नगर के भीतर चल दिया । नगर में प्रविष्ट होते ही एक निर्जल कूप के चारों ओर लोगों की भीड़ को देखा। अभयकुमार ने जाकर पूछा-"यह लोग क्यों इकट्ठहो रहे हैं ?" लोगों ने कहा-"सूखे कुएँ के अंदर राजा की स्वर्ण मुद्रिका गिर गई है । राजा ने घोषणा की हुई है, कि जो व्यक्ति कूप के तट पर खड़ा होकर अपने हाथ से अंगुठी को निकाल देगा, उसे महान पारितोषिक दूंगा।" ऐसा सुनने पर समीप में स्थित राज्यकर्मचा
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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