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.. नन्दीसूत्रम्
आभिनिबोधिकज्ञान मूलम्-से किं तं आभिणिबोहियनाणं ? आभिणिबोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-सुयनिस्सियं च, असुयनिस्सियं च।
से किं तं असुयनिस्सियं ? असुयनिस्सियं चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहा१. उप्पत्तिया ६. वेणइमा ३. कम्मया ४. परिणामिया।
बुद्धी चउविवहा बुत्ता; पंचमा नोवलब्भइ ॥६८॥ सूत्र २६॥ छाया-अथ किं तदाभिनिबोधिकज्ञानम् ? आभिनिबोधिकज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-श्रुतनिश्रितं च, अश्रुतनिश्रितञ्च ।
अथ किं तदश्रुतनिश्रितम् ? अश्रुतनिश्रितं चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा१. औत्पत्तिकी २. वैनयिकी ३. कर्मजा ४. पारिणामिकी ।
बुद्धिश्चतुर्विधोक्ता, पंचमी. नोपलभ्यते ॥६८॥ सूत्र २६॥ पदार्थ से किं तं श्राभिणिबोहियनाणं-वह आभिनिबोधिक ज्ञान कौन सा है ? आभिणिबोहियनाणं-आभिनिबोधिकज्ञान दुविहं-दो प्रकार का है, तं जहा-जैसे-सुयनिस्सियं च-श्रुतनिश्रित
और असुयनिस्सियं च-अश्रुतनिश्रित, से किं तं असुयनिस्सियं ?-अश्रुतनिश्रित कौन सा है ? असुयनिस्सियं-अश्रुतनिश्रित चउब्धिह-चार प्रकार से है तं जहा-जैसे उप्पत्तिया-औत्पत्तिकी वेणइयावैनयिकी कम्मया-कर्मजा परिणामिया-पारिणामिकी चउविहा–चार प्रकार की बुद्धी-बुद्धि वुत्ताकही गयी है, पंचमा-पांचवीं नोवलम्भ-उपलब्ध नहीं होती।
भावार्थ-भगवन् ! वह आभिनिबोधिकज्ञान किस प्रकार का है ?
उत्तर में गुरुजी बोले-भद्र ! आभिनिबोधिकज्ञान-मतिज्ञान दो प्रकार का है, जैसे-१. श्रुतनिश्रित और २. अश्रुतनिश्रित ।
शिष्य ने पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! अश्रुतनिश्रित कितने प्रकार का है ? गुरुजी बोले-अश्रुतनिश्रित चार प्रकार का है, जैसे
१. औत्पत्तिकी-तथाविध क्षयोपशम भाव के कारण और शास्त्र अभ्यास के बिना . जिसकी उत्पत्ति हो, उसे औत्पत्तिकी बुद्धि कहते हैं।
२. वनयिकी-गुरु आदि की भक्ति से उत्पन्न वैनयिकी बुद्धि कही गयी है। ३. कर्मजा-शिल्पादि के अभ्यास से उत्पन्न बुद्धि कर्मजा है।
४. पारिणामिकी-चिरकाल तक पूर्वापर पर्यालोचन से जो बुद्धि पैदा होती है, उसे पारिणामिकी बुद्धि कहते हैं।
ये चार प्रकार की ही बुद्धिएं शास्त्रकारों ने वर्णित की हैं, पांचवां भेद उपलब्ध नहीं होता ॥सूत्र २६॥