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. नन्दीसूत्रम्
है। मतिज्ञान कारण है और श्रुतज्ञान कार्य है । यदि मतिज्ञान न हो तो श्रुत नहीं हो सकता, एवं यदि श्रुत ज्ञान न हो तो अक्षर ज्ञान कैसे हो सकता है ? एकेन्द्रिय से लेकर चौरिन्द्रय तक द्रव्य श्रुत नहीं होता, किन्तु भाव श्रुत तो उनमें भी पाया जाता है। भावश्रुत, द्रव्यश्रुत होने पर ही कार्यान्वित होता है। यदि भावश्रुत न हो तो द्रव्यश्रुत का ग्रहण नहीं हो सकता । श्रुतज्ञान की विशेष व्याख्या आगे यथा स्थान की जाएगी।
इसके अनन्तर मति-श्रुत का विवेचन दूसरी शैली से किया जाता है ।।सूत्र २४॥
मति और श्रुत के दो रूप मूलम्-अविसेसिया मई मइनाणं च, मइ अन्नाणं च । विसेसिया सम्मदिट्ठिस्स मई-मइनाणं, मिच्छदिट्ठिस्स मई-मइ अन्नाणं । अविसेसिअं सुयं सुयनाणं च, सुयअन्नाणं च । विसेसिघ्रं सुयं-सम्मदिट्ठिस्स सुयं-सुयनाणं, मिच्छदिट्ठिस्स सुयं-सुयअन्नाणं ।।सूत्र २५॥
छाया-अविशेषिता मतिर्मतिज्ञानञ्च, मत्यज्ञानञ्च । विशेषिता सम्यग्दृष्टेर्मतिर्मतिज्ञानं, मिथ्यादृष्टर्मतिर्मत्यज्ञानम् । अविशेषितं श्रुतं श्रुतज्ञानञ्च, श्रुताज्ञानञ्च । विशेषितं श्रुतं सम्यग्दृष्टेः श्रुतं श्रुतज्ञानं, मिथ्यादृष्टेः श्रुतं श्रुताज्ञानम् ।।सूत्र २५॥
पदार्थ-अविसेसिया मई--विशेषता रहित मति च-और मइनाणं-मतिज्ञान मइअन्नाणं,चमति अज्ञान दोनों होते हैं सम्मदिष्टिस्स----सम्यगदृष्टि की विसेसिया-विशेषता सहित वही मई-मति मइनाणं-मतिज्ञान होता है, मिच्छदिहिस्स-मिथ्यादृष्टि की मति मइअन्नाणं-मति अज्ञान है, अविसेसिनं-विशेषतारहित सुयं-श्रुत सुयनाणं च---श्रुतज्ञान और सुयअन्नाणं च-श्रुतअज्ञान दोनों ही हैं, विसेसि सयं-विशेषता सहित श्रुत सम्मदिहिस्स-सम्यग्दृष्टिका सुयं-श्रुतज्ञान है मिच्छदिहिस्समिथ्यादृष्टि का सुर्य-श्रुत सुयअन्नाणं-श्रुत अज्ञान है।
भावार्थ-विशेषता रहित मति–मतिज्ञान और मंति-अज्ञान दोनों प्रकार के हैं । परन्तु विशेषता सहित वही मति सम्यग्दृष्टि की मतिज्ञान है और मिथ्यादृष्टि की मतिमति अज्ञान होता है। इसी प्रकार विशेषता रहित श्रुत-श्रुतज्ञान और श्रुत-अज्ञान उभय रूप हैं। विशेषता प्राप्त वही सम्यग्दृष्टिका श्रुत श्रुतज्ञान और मिथ्यादृष्टि का श्रुत श्रुतअज्ञान होता है ।सूत्र २५।।
____टीका-इस सूत्र में सामान्य-विशेष, ज्ञान-अज्ञान, और सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि के विषय में कुछ उल्लेख किया गया है, जैसे कि सामान्यतया मति शब्द ज्ञान और अज्ञान दोनों में प्रयुक्त होता है । सामान्य का यह लक्षण है, जैसे कि किसी ने फल कहा, फल में सभी फलों का समावेश हो जाता है । एवं द्रव्य में,