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नन्दीसूत्रम्
श्रोताओं में पाया जाता है । सम्यग्दृष्टि में जो भाक्श्रुत है, वह भगवान का दिया हुआ श्रुतज्ञान है । द्रव्यश्रत केवलज्ञान पूर्वक भी होता है और भावश्रतपूर्वक भी, किन्त वर्तमान काल में जो आगम हैं, वे भावश्रुतपूर्वक हैं, क्योंकि वे गणधरों के द्वारा गुम्फित हैं । गणधरों को जो श्रुतज्ञान प्राप्त हुआ, वह भगवान के वचनयोग रूप द्रव्यश्रुत से हुआ है।
इस तरह सकलादेश पारमार्थिक प्रत्यक्ष एवं नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष ज्ञान का प्रकरण समाप्त हुआ। ॥ सूत्र २३ ।।
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परोक्षज्ञान
मूलम्-से किं तं परुक्खनाणं? परुक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिणिबोहिअनाणपरोक्खं च, सुअनाणपरोक्खं च, जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुअनाणं तथाभिणिबोहियनाणं, दोऽवि एयाइँ अण्णमण्णमणुगयाइं, तहवि पुण इत्थ आयरिया नाणत्तं पण्णवयंति-अभिनिबुज्झइ त्तिाभिणिबोहिअनाणं, सुणेइ त्ति सुअं, मइपुव्वं जेण सुग्रं, न मई सुअपुव्विा ॥सूत्र२४॥
छाया-अथ किं तत् परोक्षज्ञानम् ? परोक्षज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-आभिनिबोधिकज्ञानपरोक्षञ्च, श्रुतज्ञानपरोक्षञ्च, यत्राभिनिबोधिकज्ञानं तत्र श्रुतज्ञानं, यत्र श्रुतज्ञानं तत्राभिनिबोधिकज्ञानं, द्वे अपि एते अन्यदन्यदनुगते, तथापि पुनरत्राऽऽचार्या नानात्वं प्रज्ञापयन्ति-अभिनिबुध्यत इत्याभिनिबोधिकज्ञानं, शृणोति इति श्रुतं, मतिपूर्व येन श्रुतं न मतिः श्रुतपूर्विका ॥सूत्र२४॥
पदार्थ-से किं तं परुक्खनाणं-वह परोक्षज्ञान कितने प्रकार का है ? परुक्खनाणं-परोक्षज्ञान दुविहं-दो प्रकार का पन्नत्तं-प्रतिपादित किया गया है, तं जहा—जैसे-श्राभिणिबोहिअनाणपरोक्खं च-आभिनिबोधिक ज्ञान परोक्ष और सुअनाणपरोक्खंच-श्रुतज्ञानपरोक्ष 'च' शब्द स्वगत अनेक भेदों का सूचक है, जत्थ-जहां आभिणिबोहियनाणं-आभिनिबोधिकज्ञान है, तत्थ-वहां सुनाणं श्रुतज्ञान है, जत्थ-जहां सुअनाणं-श्रुतज्ञान है, तत्थ-वहां श्रामिणिबोहियनाणं--आभिनिबोधिकज्ञान है, दोऽवि-दोनों ही एयाइं-ये अण्णमण्णमणुगयाई-अन्योऽन्य अनुगत हैं, तहवि—फिर भी पुणअनुगत होने पर भी इत्थ-यहां पर पायरिया-आचार्य नाणतं-भेद परणवयंति प्रदिपादन करते हैंअभिनिबुज्झइ त्ति-जो सन्मुख आए हुए पदार्थों को प्रमाणपूर्वक अभिगत करता है, वह आभिणिबोहिअनाणं-आभिनिबोधिक ज्ञान है, किन्तु सुणेइत्ति-जो सुना जाए वह सुध-श्रुत है, मइपुग्वं-मति पूर्वक जेण—जिससे सुअं-श्रुतज्ञान होता है, मई-मति सुअपुब्बिा -श्रुतपूर्विका न-नहीं है।
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-गुरुवर ! वह परोक्षज्ञान कितने प्रकार का है ?