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नन्दी सूत्रम्
३. जिन्होंने केवलज्ञान होने से पहले मतिबुत अवधि और मनःपर्यव ये चार ज्ञान प्राप्त किए,
वे सिद्ध उनसे संख्यात गुणा ।
४. जिन्होंने चद्यस्यकाल में मति श्रुत-अवधि ये तीन ज्ञान प्राप्त किए, वे सिद्ध उनसे संख्यात
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गुणा।
उक्तं च
१०. अवगहनाद्वार
१. दो हाच प्रमाण अवगहना से सिद्ध हुए, सबसे थोड़े ।
२. पाँच सौ धनुष की अवगहना से सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणा ।
३. मध्यम अवगहना से सिद्ध हुए, उनसे असंख्यात गुणा प्रकारान्तर से सात हाथ की अवगहना से सिद्ध हुए, सबसे थोड़े पाँच सौ धनुष्य की अवगहना से सिद्ध हुए विशेषाधिक ।
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११. उत्कृष्टद्वार
१. सम्यक्त्व पाकर प्रतिपाति नहीं हुए, वे सिद्ध सबसे थोड़े
२. जो सम्यक्त्व से संरूपात काल तक प्रतिपाति होकर सिद्ध हुए, वे सिद्ध उनसे असंख्यात गुणा अधिक।
"मपजवनाथ सिगे, दुगे चटके मणस्स नाणस्स ।
थोवा संख असंखा ओहितिगे हुम्ति संखेज्जा ॥"
३. असंख्यात काल प्रतिपाति होकर सिद्ध हुए, वे सिद्ध उनसे असंख्यात गुणा अधिक ।
४. अनन्तकाल प्रतिपाति होकर सिद्ध हुए, उनसे असंख्यात गुणा अधिक ।
१२. अन्तरद्वार
१. छः मास का अन्तर पाकर सिद्ध हुए, सबसे थोड़े ।
२. एक समय का अन्तर पाकर सिद्ध हुए, उनसे संस्थात गुणा ।
३. दो समय का अन्तर, तीन समय का अन्तर और चार समय का अन्तर पाकर सिद्ध हुए, संस्पात गुणा यावत् तीन मास तक संख्यात गुणा कहना। तत्पश्चात् संस्थात गुणहीन कहना यावत् छः
मास तक ।
१३. अनुसमयद्वार
१. आठ समय तक निरन्तर सिद्ध हुए, सबसे थोड़े ।
२. सात समय तक निरन्तर सिद्ध हुए, संख्यात गुणा ।
३. छः समय तक निरन्तर सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणा । इसी प्रकार ५, ४, ३, २, १, समय निरन्तर सिद्ध हुए, क्रमशः उनसे संख्यात गुणा ।
१४. गणनाद्वार
१. एक समय में १०८ सीके हुए सिद्ध, सबसे थोड़े ।
२. एक समय में १०७ सीके हुऐ सिद्ध, उनसे अनन्त गुणा ।