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सिद्ध-केवलज्ञान
१. उत्सर्पिणी के पहले आरे में सीझे हुए सिद्ध सब से थोड़े। १. दूसरे आरे में सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा ।
३. पाँचवें आरे में सीझे हए सिद्ध, उन से असंख्यात गुणा, क्योंकि उस आरे का कालमान असंख्यात है।
४. छठे आरे के सिद्ध उन से विशेषाधिक। ५. चौथे आरे में सीझे हए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा ।
६. तीसरे आरे में सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । उक्तं च
“अइदूसमाइ थोवा संख, असंखा उ दुन्नि सविसेसा। दूसमसुसमा संखा गुणा, उ उस्सप्पिणी सिद्धा ॥
उक्त दोनों काल के समुदाय से अल्पबहुत्व १. दुःषम-दुःषम दोनों आरे के सीझे हए सिद्ध परस्पर तुल्ल, सब से थोड़े। २. उत्सर्पिणी के दूसरे आरे में सीझे हुए सिद्ध, उनसे विशेषाधिक । ३. अवसर्पिणी के पांचवें आरे के सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ४. दुःषम-सुषम दोनों आरे में सीझे हुए सिद्ध उनसे संख्यात गुणा । ५. अवसर्पिणी में सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा ।
६. उत्सर्पिणी में सीझे हुए सर्वसिद्ध, उनसे विशेषधिक । ३. गतिद्वार
१. मानुषियों से अनन्तरागत सिद्ध, सबसे थोड़े । २. मनुष्यों से अनन्तरागत लिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ३. नैरयिकों से अनन्तरागत सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ३. तिथंचियों से अनन्तरागत सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ५. तिर्यंचों से अनन्तरागत सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ६.. देवियों से अनन्तरागत सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा।
७. देवों से अनन्तरागत सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । उक्तं च
"मणुई मणुया नारय, तिरिक्खिणी तह तिरिक्ख देवीओ।
. देवा य जह कमसो, संखेज्जगुणा मुणेयव्वा ॥" १. एकेन्द्रियों से अनन्तरागत सिद्ध सब से थोड़े। २. पंचेन्द्रियों से अनन्तरागत सिद्ध, उन से संख्यात गुणा । १. वनस्पति से अनन्तरागत सिद्ध सबसे थोड़े। २. पृथ्वीकाय से अनन्तरागत सिद्ध, उन से संख्यात गुणा । ३. अप्काय से अनन्तरागत सिद्ध, उन से संख्यात गुणा । ४. सकाय से अनन्तरागत सिद्ध, उन से संख्यात गुणा ।