SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नन्दीसूत्रम् उक्तं च- "सामुद्द-दीव, जल-थल, दुण्हं, दुण्हं तु थोव संखगुणा । उड्ढ अह तिरियलोए, थोवा संखगुणा संखा ॥" १. लवण समुद्र से सिद्ध हुए सब से थोड़े, कालोदधि समुद्र से सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणा । २. उन से जम्बूद्वीप से सिद्ध हुए संख्यात गुणा, उनसे धातकीखण्ड से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ३. उन से पुष्करार्द्ध द्वीप से सिद्ध हुए संख्यात गुणा। उक्तं च ___ "लवणे कालो य वा, जम्बूहीवे य धायईसंडे । पुक्खरवरे य दीवे, कमसो थोवा य संखगुणा ॥" . १. साहरण की अपेक्षा जम्बूद्वीप के हिमवन्त और शिखरी पर्वत से सिद्ध हुए, सब से थोड़े। २. उनसे हैमवन्त और हैरण्यवत क्षेत्रों से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ३. उन से महाहिमवंत तथा रूपी पर्वत से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ४. देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रों से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ५. हरिवर्ष और रम्यकवर्ष से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ६. निषध और नीलवंतगिरि से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ७. भरत और ऐरावत क्षेत्रों से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । ८. सदाकाल भावी होने से महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा । . धातकीखण्ड क्षेत्र विभाग से अल्पबहुत्व । १. हिमवन्त-शिखरीपर्वत से सिद्ध हुए सबसे थोड़े और परस्पर तुल्य । २. महाहिमवन्त-रूपी पर्वत से सिद्ध हुए संख्यात गुणा। ३. निषध-नीलवन्त पर्वत से सिद्ध हुए संख्यातगुणा । ४. हैमवत-हैरण्यवत क्षेत्रों से सिद्ध हुए संख्यात गुणा । ५. देवकुरु-उत्तरकुरु से सीझे हुएँ संख्यात गुणा। ६. हरिवर्ष-रम्यकवर्ष से सीझे हुए सिद्ध संख्यात गुणा । ७. भरत-ऐरावत क्षेत्रों से सीझ हुए सिद्ध संख्यात गुणा । ८. महाविदेह से सीझे हुए सिद्ध संख्यातगुणा, क्षेत्र की बहुलता से। २. कालद्वार १. साहरण की अपेक्षा अवसर्पिणीकाल के दुःषमदुःषम आरे में सीझे हुए सिद्ध सबसे थोड़े। २. दुःषम आरे में सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा । ३. सुषम-दुषम आरे में सीझे हुए सिद्ध, उनसे असंख्यात गुणा, क्योंकि उस आरे का कालमान असंख्यात है। ४. सुषम आरे में सीझे हुए सिद्ध उन से विशेषाधिक हैं। ५. सुषम-सुषम पहले आरे में सीझेहुए सिद्ध उनसे संख्यात गुणा। ६. दुःषम-सुषम में सीझे हुए सिद्ध उनसे संख्यात गुणा । उक्तं च "अइदुसमाइ थोवा संख, असंखा दुवे विसेसाहिया । दूसमसुसमा संखा गुणा, उ ोसप्पिणी सिद्धा ॥
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy