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________________ नन्दीसूत्रम् सिद्ध होता है, तो वह उपर्युक्त द्वीप-समुद्रों से ही हो सकता है । अढाई द्वीप से बाहर जंघाचरण और विद्याचरण लब्धि से ही जाया जा सकता है। परन्तु वहाँ रहते हुए जीव क्षपक श्रेणि में आरूढ नहीं हो सकता, उसके बिना केवलज्ञान नहीं हो सकता, केवलज्ञान हुए बिना सिद्ध गति प्राप्त नहीं कर सकता। यह द्वार समाप्त हुआ। इसमें भी १५ उपद्वार पहले की भान्ति समझ लेना। ४. स्पर्शद्वार जो भी सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं, जो आगे अनन्त सिद्ध होंगे, वे सब आत्मप्रदेशों से परस्पर मिले हुए हैं, जहां एक है, वहां अनन्त सिद्ध विराजित हैं। जहां अनन्त हैं, वहां एक है। प्रदेशों से वे एक दूसरे से . मिले हुए हैं, जैसे हजारों-लाखों प्रदीपों का प्रकाश एकीभूत होने से किसी को किसी प्रकार की अड़चन या बाधा नहीं है, वैसे ही सिद्धों के विषय में समझ लेना चाहिए। "फुसइ अणंते सिद्धे, सम्बपएसेहिं नियमो सिद्धो। ते उ असंखेज्जगुणा, देस पएसेहिं जे पुट्ठा ॥" यहां पर भी १५ उपद्वार पहले की तरह जानने चाहिएं। विशेषता न होने से उनका यहां वर्णन नहीं किया गया। ५. कालद्वार जिन क्षेत्रों से एक समय में १०८ सिद्ध हो सकते हैं, वहां से निरन्तर आठ समय तक सिद्ध हों; जिस क्षेत्र में २० या १० सिद्ध हो सकते हैं, वहां चार समय तक निरन्तर सिद्ध हों, जहां से २,३,४ सिद्ध हो सकते हैं, वहां दो समय तक निरन्तर सिद्ध हों, उक्तं च __ "जहिं अट्ठसयं सिज्मइ, अढ उ समया निरन्तरं कालो। वीस दसएसु चउरो, सेसा सिज्मन्ति दो समए ॥" इसमें भी क्षेत्रादि उपद्वार घटाते हैं, जैसे कि १. क्षेत्रद्वार-एक समय में १५ कर्मभूमि में १०८ उत्कृष्ट सिद्ध होते हैं, वहां निरन्तर आठ-समय तक सीझे। अकर्मभूमि में तथा अधोलोक में चार समय तक सीझं । नन्दन वन, पण्डुक वन और लवण समुद्र में निरन्तर दो समय तक सीझे, ऊवलोक में निरन्तर चार समय तक सिद्ध हो सकते हैं। २. कालद्वार–प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के तीसरे तथा चौथे आरे में निरन्तर आठ-आठ समय तक, शेष आरकों में ४-४ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं।' ३. गतिद्वार-देवगति से आए हुए उत्कृष्ट आठ समय तक, शेष तीन गतियों से चार-चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। ४. वेदद्वार-जो पूर्वजन्म में भी पुरुष, इस भव में भी पुरुष हों, वे इस प्रकार उत्कृष्ट ८ समय तक, शेष आठ भागों में ४ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। १. तीर्थद्वार-किसी भी तीर्थकर के शासन में उत्कृष्ठ आठ समय तक तथा पुरुष तीर्थकर औरस्त्री तीर्थकर निरन्तर दो समय तक सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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