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भवस्थ-केवलज्ञान
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गिभवस्थ-केवलनाणं-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान दुविहं-दो प्रकार से पएणतं-कहा गया है, तं जहाजैसे-पढमसमय-प्रयोगिभवस्थ-केवलनाणं च-प्रथम समय अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान और अपढमसमयअयोगिभवस्थ-केवखनाणं च-अप्रथमसमय अयोगिभवस्थ केवलज्ञान । अहवा-अथवा चरमसमय-अजोगिभवस्थ-केवलनाणं च-चरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान और अचरमसमय-अजोगि भवस्थ केवलनाणंअचरम-समय-अयोगि-भवस्थ-केवलज्ञान, से तं-यह भवत्थ-केवलनाणं-भवस्थ-केवलज्ञान है ।
भावार्थ- भगवन् ! वह केवलज्ञान कितने प्रकार का है ?
गौतम ! केवलज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे-१. भवस्थ-केवलज्ञान और २. सिद्धकेवलज्ञान ।।
· वह भवस्थ केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया है, जैसे-१ सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान और २. अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान ।
शिष्य ने फिर पूछा-भगवन् ! वह सयोगिभवस्थ केवलज्ञान कितने प्रकार का है ?
भगवान् बोले-गौतम ? सयोगिभवस्थ केवलज्ञान भी दो प्रकार का है, जैसेप्रथमसमय सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-जिसे उत्पन्न हुए प्रथम ही समय हुआ है और अप्रथम समय सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-जिस ज्ञान को पैदा हुए अनेक समय हो गए हैं । ... अथवा अन्य भी दो प्रकार से कथन किया गया है, जैसे
१. चरम समय सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-सयोगि अवस्था में जिसका अन्तिम समय शेष रह गया है। - :
२. अचरम समय सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-सयोगि अवस्था में जिस के अनेक समय शेष रहते हैं । इस प्रकार यह सयोगिभवस्थ केवलज्ञान का वर्णन है ।
शिष्य ने फिर पूछा--भगवन् ! वह अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु उत्तर में बोले-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान दो प्रकार का है, यथा
१. प्रथमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान,
२. अप्रथमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान, अथवा-१. चरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान,
२. अचरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान । इस प्रकार यह अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान का वर्णन पूरा हुआ । यही भवस्थ-केवलजान है।
टीका-इस सूत्र में सकलादेश प्रत्यक्ष का वर्णन किया गया है। अरिहन्त भगवान और सिद्ध भगवान में केवल ज्ञान तुल्य होने पर भी यहां उसके दो भेद किये गए हैं, जैसे कि १ भवस्थ केवल ज्ञान