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________________ अप्रतिपाति अवधिज्ञान खित्तनो णं— क्षेत्र से ओहिनाणी - अवधिज्ञानी जहन्नेणं - जघन्य से अंगुलस्स - अङ्गुल के असंखिज्जइ - असंख्यातवें भागमात्र क्षेत्र को जाणइ - जानता और पासइ — देखता है, उक्कोसेणं - उत्कृष्ट से लोगे - अलोक में लोग पमाणमित्ताइं - लोक परिमाण असंखिज्जाहूं – असंख्यात खंडाई खण्डों को जागइ – जानता और पासइ - देखता है । काल गं - काल से श्रहिनाणी - अवधिज्ञानी जहन्नेणं - जघन्य से श्रावलिश्राए - एक आवलिका के श्रसंखिज्जइ भागं - असंख्यातवें भाग को जाणइ -- जानता पासइ — देखता है, उक्को सेणं - उत्कृष्ट से श्रमणायं च - अतीत और अनागत कालं काल में श्रसंखिज्जाश्रो - असंख्यात उसप्पिणी - उत्सपिणियों और श्रवसप्पिणीश्रो- अवसर्पिणियों को जाणइ - जानता पासइ – देखता है । भावो गं - भाव से हिनाणी - अवधिज्ञानी जहन्नेणं - जघन्य से श्रणंते – अनन्त भावे - भावों कोजाइ – जानता पासइ – देखता है, उक्कोसेणं वि - उत्कृष्ट से भी श्रणंते - अनन्त भावे - भावों को जाणइ – जानता पासइ – देखता है, किन्तु सम्वभावाण मणंतभागं - सब भावों-पर्यायों के अनन्तवें भाग मात्र को जाणइ – जानता पासइ — देखता है । भावार्थ - वह अवधिज्ञान संक्षेप से चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि- द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । उन चारों में १. द्रव्य से - अवधिज्ञानी जघन्य - अनन्त रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है, उत्कृष्ट सब रूपी द्रव्यों को जानता व देखता है । २. क्षेत्र से - अवधिज्ञानी जघन्य - - अंगुल के असंख्यातवें भागमात्र क्षेत्र को जानता व देखता है, उत्कृष्ट अलोक में लोक परिमित असंख्यात खण्डों को जानता व देखता है । ३. काल से —– अवधिज्ञानी जघन्य - एक आवलिका के असंख्यातवें भाग मात्र काल को जानता व देखता है, उत्कृष्ट - अतीत और अनागत असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों परिमाण काल को जानता व देखता है । ४. भाव से - अवधिज्ञानी जघन्य - अनन्त भावों को जानता व देखता है और उत्कृष्ट भी अनन्त भावों को जानता व देखता है, किन्तु सब पर्यायों के अनन्तवें भागमात्र को जानता और देखता है ।। सूत्र १६ ।। टीक - इस सूत्र में अवधिज्ञान का सविस्तर वर्णन किया गया है । इस पाठ में सभी प्रकार के अवधिज्ञान का समावेश हो जाता है । अवधिज्ञान का जघन्य विषय कितना है और उत्कृष्ट विषय कितना ? इसका विवरण द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से किया गया है, जैसे कि द्रव्यतः - अवधिज्ञानी जघन्य तो अनन्त रूपी द्रव्यों को जानता व देखता है— चतुःस्पर्शी मनोवर्गणा और आठ स्पर्शी तैजस-वर्गणा के अन्तराल में जितने भी रूपी द्रव्य हैं, उनको और उत्कृष्ट सर्व सूक्ष्म- बादर द्रव्यों को जानता व रूपी देखता है । क्षेत्रतः - अवधिज्ञानी जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भागमात्र क्षेत्र को जानता व देखता है और
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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