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अवधिज्ञान का मध्यम क्षेत्र
है, जैसे कि अंगुलमावलियाणं इसमें अगुल शब्द से प्रमाणागुल का ग्रहण करना चाहिए। किन्हीं आचार्यों के अभिमत से उत्सेधाङ्गुल का उल्लेख मिलता है, उनकी अपेक्षा प्रमाणाङ्गुल के समर्थक अधिक हैं, किन्तु ।। आत्माङ्गुल का ग्रहण बिल्कुल नहीं करना। यद्यपि क्षेत्र गणना प्रदेश से और काल की गणना समय से आरम्भ होती है, तदपि यह गणना नैश्चयिक होने से ग्रहण नहीं की, कारण कि व्यावहारिक क्षेत्र और काल का नाप शास्त्रीय पद्धति से किया गया है। अंगुल का असंख्यातवां भाग क्षेत्र और आवलिका का असंख्यातवां भाग काल, इनसे व्यावहारिक नाप आरम्भ होता है । अंगुल, हाथ, कोस, योजन, भरत, जम्बूद्वीप, मनुष्यलोक, रुचक, द्वीप, समुद्र आदि शब्द क्षेत्र के वाचक हैं अर्थात् इनसे क्षेत्र सूचित होता है। आवलिका, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, वर्ष, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी और उत्सपिणी ये काल के द्योतक हैं, सूत्रकार ने काल की गणना इन से की है। पृथक्त्व शब्द जैन परिभाषा में २ से लेकर 8 तक की संख्या के लिए रूढ़ है, जैसे कि पृथक्त्व अंगुल, पृथक्त्व कोस, इसी प्रकार योजन और मास, वर्ष आदि जोड़ देने से उसका फलितार्थ निकल आता है।
सूत्रकार ने जो क्षेत्र शब्द का प्रयोग किया है, वह आकाश या उसके भाग या उपभाग से तात्पर्य है। कालत: अतीत-वर्तमान और अनागत से तात्पर्य है। यद्यपि क्षेत्र और काल ये दोनों अरूपी होने से
अवधिज्ञान के विषय नहीं हैं, तदपि क्षेत्र और काल ये दोनों उपचार से देखना कथन किया गया है । • निष्कर्ष यह निकला कि जो क्षेत्र व काल रूपी द्रव्यों से सम्वन्धित है, अवधिज्ञानी उसे जानता व देखता है । ज्यों-ज्यों अवधिज्ञानी के प्रत्यक्ष करने का काल अधिकतर होता जाता है, त्यों-त्यों द्रव्य,क्षेत्र, काल और भाव की भी अभिवृद्धि होती जाती है, क्षेत्र की वृद्धि होने पर द्रव्य और भाव की वृद्धि का होना निश्चित है, किन्तु काल की वृद्धि में भजना है। जब द्रव्यतः वृद्धि होती है, तब भाव से वृद्धि का होना भी निश्चित है, किन्तु क्षेत्र और काल में वृद्धि का होना भजना है। भाव की वृद्धि होने पर काल, क्षेत्र और द्रव्य की वृद्धि विकल्प से होती है, जैसे कि भाष्यकार ने लिखा है
"काले पवढमाणे, सव्वे दव्वादो पवन्ति ।..
खेत्ते कालो भइओ, वडन्ति उ दव-पज्जाया ॥" अर्थात् काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि नियमेन है । क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की भजना है, किन्तु जब द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होती है, तब क्षेत्र और काल की वृद्धि में भजनाविकल्प है।
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कौन किससे सूक्ष्म है ? मूलम्-८ सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं ।
अंगुल सेढी मित्ते, ओसप्पिणीप्रो असंखिज्जा ॥६२॥
से त वड्डमाणयं प्रोहिनाणं ॥ सूत्र १२ ॥ ... छाया-८. सूक्ष्मश्च भवति कालः, ततः सूक्ष्मतरं भवति क्षेत्रम् । अङ्गुलश्रेणिमात्रे,
अवसर्पिण्योऽसंख्येयाः ।। ६२ ॥. तदेतद् वर्द्धमानकमवधिज्ञानम् ॥ सूत्र १२ ।।