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नन्दीसूत्रम्
है । पाँच इन्द्रियाँ और छठा मन, ये सब श्रुतज्ञान में निमित्त हैं । परन्तु श्रोत्रेन्द्रिय श्रुतज्ञान में प्रधान कारण है । अतः सर्व प्रथम श्रोत्रेन्द्रिय का नाम निर्देश किया है। स्वयं पढ़ने में चक्षुरिन्द्रिय भी सहयोगी है। प्रतः सूत्रकार ने-क्षयोपशम और पुण्योदय की प्रबलता को लक्ष्य में रखकर श्रोत्रेन्द्रिय से क्रम अपनाना अधिक उपयोगी समझा है । .
मति और श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से भावेन्द्रिय और शुभ नाम कर्मोदय से द्रव्येन्द्रियां प्राप्त होती हैं । वीर्य और योग से उन्हें व्याप्त किया जाता है।
यह हुमा इन्द्रियप्रत्यक्ष का वर्णन ॥ सूत्र ४॥
पारमार्थिक प्रत्यक्ष के तीन भेद मूलम् –से किं तं नोइंदियपच्चक्खं? नोइंदियपच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा१. ओहिनाणपच्चक्खं २. मणपज्जवनाणपच्चक्खं ३. केवलनाणपच्चक्खं ॥ सूत्र ५॥
छाया-अथ किं तन्नोइन्द्रि यप्रत्यक्षं ? नोइन्द्रियप्रत्यक्षं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. अवधिज्ञानप्रत्यक्षं, २. मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्षं, ३. केवलज्ञानप्रत्यक्षम् ॥ सूत्र ५ ॥
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-गुरुदेव ! नोइन्द्रिय--बिना किसी इन्द्रिय, मनरूप बाहिर के निमित्त की सहायता के, साक्षात् आत्मा से होने वाला ज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरुदेव ने उत्तर दिया-वह नोइन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान तीन प्रकार का है-१. अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, २. मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, ३. केवलज्ञानप्रत्यक्ष ॥ सूत्र ५॥
मूलम्-से किं तं ओहिनाणपच्चक्खं ? ओहिनाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवपच्चइयं च खाअोवसमियं च ॥ सूत्र ६ ॥
छाया-अथ किं तदवधिज्ञानप्रत्यक्षम् ? अवधिज्ञानप्रत्यक्षं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाभवप्रत्ययिकञ्च, क्षायोपश मिकञ्च ॥ सूत्र ६ ॥
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-वह अवधिज्ञानप्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ? गुरुदेव उत्तर में बोले-वत्स! अवधिज्ञान दो प्रकार का वर्णित है, जैसे कि-१. भवप्रत्ययिक और २. क्षायोपशमिक ॥ सूत्र ६ ॥
मूलम्-से किं तं भवपच्चइयं ? भवपच्चइयं दुण्हं, तंजहा–देवाण य, नेरइयाण य ॥ सूत्र ७ ॥