________________
नन्दीसूत्रम्
के भेद से दो प्रकार की है। बाह्य निर्वृत्ति से इन्द्रियाकार-पुदगल रचना ली गई है और आभ्यन्तर निवृत्ति से इन्द्रियाकार आत्म प्रदेश लिए गए हैं । उपकरण का अर्थ होता है-उपकार का प्रयोजक साधन । बाह्य और आभ्यन्तर निवृत्ति की शक्ति विशेष को उपकरणेन्द्रिय कहते हैं। सारांश यह निकला कि इन्द्रिय की आकृति को निवृत्ति कहते हैं और उनमें विशेष प्रकार की पौद्गलिक शक्ति को उपकरण कहते हैं। द्रव्येन्द्रियों की बाह्य आकृति सर्व जीवों की भिन्न २ प्रकार की देखी जाती है, किन्तु आभ्यन्तर निवृत्ति इन्द्रिय सब जीवों की समान रूप से होती है, जैसे कि प्रज्ञापना सत्र के १५वें पदमें लिखा है"सोइंदिए णं भन्ते ! कि संठाण संठिए पण्णत्ते गोयमा ! कलंबूया संठाण संठिए पण्णत्ते । चक्खिन्दिए णं भन्ते ! किं संठाण संठिए पण्णत्ते १ गोयमा मसूर चन्द संठाण संठिए पण्णत्ते । घाणिन्दिए णं भन्ते । किं संठाण संठिए पएणते? गोयमा ! अइमुत्तग संठाण संठिए पण्णत्ते । जिभिन्दिए भन्ते । किं संठाण संठिए पएणते ? गोयमा ! खुरप्प संठाण संठिए पण्णत्ते । फासिन्दिणं भन्ते ! किं संठाण संठिए पएणते ? गोयमा ! नाणा संठाण संठिए पण्णत्ते ।"
___ इस पाठ का सारांश इतना ही है कि श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्बक पुष्प के समान, चक्षुरिन्द्रिय का संस्थान मसूर और चन्द्र के समान गोल, घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक के समान, रसनेन्द्रिय का संस्थान क्षुरप्र के समान और स्पर्शनेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का वर्णित है। अतः आभ्यन्तर निति सब के समान ही होती है। आभ्यन्तर निवृत्ति से उपकरणेन्द्रिय की शक्ति विशिष्ट होती है। किसी विशेष घातक कारण के उपस्थित हो जाने पर शक्ति का उपघात हो जाता है। तथा साधककारण (ोषधि आदि) से शक्ति बढ़ जाती है, ओषधि तथा विष का प्रभाव उपकरण इन्द्रिय तक ही हो सकता है।
भावेन्द्रिय भी दो प्रकार की होती है, जैसे कि-लब्धि और उपयोग । मति-ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से होने वाले एक प्रकार के आत्मिक परिणाम को लब्धि कहते हैं। शब्द, रूप आदि विषयों का सामान्य तथा विशेष प्रकार से जो बोध होता है, उसे उपयोग इन्द्रिय कहते हैं। अत: इन्द्रिय प्रत्यक्ष में द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की इन्द्रियों का ग्रहण होता है । दोनों में से एक के अभाव होने पर इन्द्रिय प्रत्यक्ष की उपपत्ति नहीं हो सकती ।
नो-इन्दियपच्चक्खं-इस पद में नो शब्द सर्व निषेधवाची है। क्योंकि नोइन्द्रिय मन का नाम भी है। अतः जो प्रत्यक्ष इन्द्रिय, मन तथा आलोक आदि बाह्य साधनों की अपेक्षा नहीं रखता, जिसका सीधा सम्बन्ध आत्मा और उसके विषय से हो, उसे नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष कहते हैं। नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष का यही अर्थ सूत्रकार को अभीष्ट है, न तु मानसिक ज्ञान ।
से—यह मगधदेशीय प्रसिद्ध निपात शब्द है, जिस का अर्थ, अथ होता है। अथ शब्द निम्न प्रकार के अर्थों में ग्रहण किया जाता है-"अथ, प्रक्रिया-प्रश्न-पानन्तर्य-मङ्गलोपन्यास-प्रतिवचन-समुच्चयेष्विति, इह चोपन्यासार्थो वेदितव्यः ।
सूत्रकर्ता ने जो इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान का कथन किया है, वह लौकिक व्यवहार की अपेक्षा से किया है, न तु परमार्थ की दृष्टि से। क्योंकि लोक में यह कहने की प्रथा है कि मैंने स्वयं आंखों से प्रत्यक्ष देखा है इत्यादि । इसीको सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं, जैसे कि