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ज्ञान के पांच भेद
अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान, ये दोनों देश (विकल) प्रत्यक्ष कहलाते हैं। केवल ज्ञान ही सर्वप्रत्यक्ष होता है, क्योंकि प्रत्यक्ष ज्ञान में इन्द्रिय और मन की सहायता अनपेक्षित है। जो ज्ञान इन्द्रिय
और मन की सहायता से होता है, उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं। इन्द्रिय और मन से जो प्रत्यक्ष होता है, उसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं, पारमार्थिक प्रत्यक्ष नहीं। परोक्षज्ञान के विषय में निम्नलिखित गाथा में स्पष्ट किया है, जैसे कि
"अक्खस्स पोग्गलमया जं, दविन्दिय मणापरा होति ।
तेहितो जं नाणं, परोक्खमिह तमणुमाण व ॥" जो ज्ञान इन्द्रिय और मन के माध्यम से उत्पन्न होता है, वह परोक्ष कहलाता है, क्योंकि इन्द्रियां और मन ये पुद्गलमय हैं। स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान, आगम इनसे जो ज्ञान होता है, वह परोक्ष कहलाता है, वैसे ही इन्द्रियों एवं मन से जो ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्ष होते हुए भी परोक्ष ही है, क्योंकि वह ज्ञान पराधीन है, स्वाधीन नहीं । जिज्ञासु निम्नलिखित प्रश्नोत्तर से यह जानने का प्रयास करें, जैसे कि
____ "इन्द्रियमनोनिमित्ताधीनं कथं परोक्षम् ? उच्यते पराश्रयत्वात्, तथाहि पुद्गलमयस्वाद्र्व्येन्द्रियमनास्यात्मनः पृथग्भूतानि, ततः तदाश्रयेणोपजायमानं ज्ञानमात्मनो न साक्षात्, किन्तु परम्परया, इतीन्द्रियमनोनिमित्तं ज्ञानं धूमादग्निज्ञानमिव परोक्षम् ।" . जैसे धूमके देखने से अग्नि का ज्ञान होता है, वैसे ही परोक्ष ज्ञान के विषय में भी जानना चाहिए । ॥ सूत्र २॥
सांव्यावहारिक और पारमार्थिक प्रत्यक्ष मूलम्-से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा—१. इंदियपच्चक्खं, २. नोइंदियपच्चक्खं च ॥सूत्र ३॥
छाया-अथ किं तत्प्रत्यक्षं ? प्रत्यक्षं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. इन्द्रियप्रत्यक्षं २. नोइन्द्रियप्रत्यक्षञ्च ॥सूत्र ३॥
भावार्थ-शिष्य गुरु से.पूछता है, भगवन् ! उस प्रत्यक्ष ज्ञान के कितने भेद हैं ? उत्तर में गुरुदेव बोले-वत्स ! प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद हैं, जैसे१. इन्द्रिय प्रत्यक्ष और २. नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष . ॥ सूत्र ३॥
टीका-इस सूत्र में प्रत्यक्ष ज्ञान के भेदों का वर्णन किया गया है। प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का होता है-इन्द्रिय प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष । इन्द्रिय आत्मा की वैभाविक संज्ञा है। इन्द्रिय के दो भेद हैं, द्रव्येन्द्रय और भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय भी दो प्रकार की होती हैं, १. निवृत्ति द्रव्येन्द्रिय और २. उपकरण द्रव्येन्द्रिय । निवृत्ति का अर्थ होता है--इन्द्रियाकार रचना। वह बाह्य और आभ्यन्तर