________________
नन्दीसूत्रम् है । ऐसे लोगों की परिषद् को दुर्विदग्धा परिषद् कहते हैं । दुर्विदग्ध तीन प्रकार के होते हैं -किंचिन्मात्रग्राही, पल्लवग्राही, और त्वरितग्राही । इनमें से कोई भी हो, वह दुर्विदग्ध है।
उपर्युक्त परिषदों में पहली विज्ञ परिषद् अनुयोग के सर्वथा उचित है। दूसरी अविज्ञ परिषद भी कथंचित् उचित ही है। क्योंकि आगमों की व्याख्या समझाने में विलंब तो अवश्य होता है, किन्तु समयान्तर में सफलीभूत होने में संदेह नहीं। तीसरी विदग्धा तो शास्त्रीय ज्ञान के सर्वथा अयोग्य है।
इसी बात को दृष्टि में रखते हुए देववाचक ने शास्त्रीय ज्ञान के श्रोताओं की परिषदों का पहिले वर्णन किया है।