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नन्दीसूत्रम्
पिण्डविशुद्धि, समिति, भावना, भिक्षु की प्रतिमाएं, इन्द्रियनिरोध, प्रतिलेखन, गुप्ति और अभिग्रह इन सबके समुदाय को 'करण' कहते हैं । वाचक नागहस्तीजी इन सब के वेत्ता, साधक और आराधक थे। भंगिय-सप्तभंगी, प्रमाणभंगी, नयभंगी, गांगेय अनगार के भंग तथा अन्य प्रकार के जितने भी भंग हैं, उन सब में वाचकजी की गति थी । कम्मप्पयड़ी-पहाणाणं-कर्मप्रकृति के विशेषज्ञ थे। समुज्ज्वल चारित्र
और विद्वत्ता से आर्य नागहस्तीजी वाचक बने। इस गाथा में वंदन नहीं किया गया है, बल्कि यशस्वी वाचकवंश में होनेवाली परम्परा वृद्धि को प्राप्त हो, ऐसी मंगल-कामना प्रकट की गई है।
मूलम्-जच्चंजण-धाउ समप्पहाणं, मुद्दिय-कुवलय-निहाणं ।
वड्ढउ वायगवंसो, रेवइ नक्खत्त-नामाणं ॥३५॥ छाया-जात्यांजन-धातुसमप्रभाणां, मृद्विका-कुवलयनिभानाम् ।
वर्द्धतां वाचकवंशो, रेवतिनक्षत्रनाम्नाम् ॥३५।।
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पदार्थ-जच्चंजण-धाउ-समप्पहाणं-जाति अंजन धातु के समान प्रभावाले तथा मुद्दिय-कुवलयनिहाणं-द्राक्षा व कुवलय कमल के समान नील कांतिवाले, रेवइ-नक्खत्त नामाणं-रेवति नक्षत्र नामक मुनिप्रवर का वायगवंसो-वाचक वंश, बढउ-वृद्धि प्राप्त करे ।
भावार्थ-उत्तम जाति के अंजन धातु के तुल्य कांतिवाले तथा पकी हुई द्राक्षा और नीलकमल अथवा नीलमणि के समान कांतिवाले, आर्य रेवतिनक्षत्र का वाचकवंश वृद्धि प्राप्त करे।
टीका-इस गाथा में आचार्य नागहस्ति के शिष्य आचार्य रेवतिनक्षत्र का उल्लेख किया गया है
(२३) आचार्य रेवतिनक्षत्र जाति-सम्पन्न होने पर भी इनके शरीर की दीप्ति अंजन धातु के सदृश थी। अंजन आंखों में ठंडक पैदा करता है और चक्षुरोग को दूर करता है, इसी प्रकार इनके दर्शनों से भी भव्य-प्राणियों के नेत्रों में शीतलता प्राप्त होती.थी। अतः स्तुतिकार ने शरीर-कान्ति के विषय में लिखा है-मुद्दियकुवलयनिहाणं'-इसका आशय है, जैसे परिपक्व द्राक्षाफल तथा नीलोत्पल कमल का वर्ण कमनीय होता है, उसके समान उनके देह की कान्ति थी । वृत्तिकार ने यह भी लिखा है कि : किसी आचार्य का अभिमत है कि कुवलय शब्द से मणि विशेष जाना चाहिए। जैसे कि : मृद्विकाकुवलयनिभानां परिपाकातरसद्राक्षया नीलोत्पलं च समं प्रभाणाम्, अपरे पुनराहु कुवलयमिति मणिविशेषस्तब्राप्यविरोधः । स्तुतिकार ने इनको भी वाचक वंश में मानकर वाचक वंश की वृद्धि का आशीर्वाद दिया है। जैसे कि-बड्डउ वायगवंसो-वाचकानां वंशो वर्द्धताम्-संभव है, उनके जन्म समय या दीक्षा के समय रेवती नक्षत्र का योग लगा हुआ हो, इसी कारण उनका नाम रेवतिनक्षत्र रखा गया हो ।