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युग-प्रधान स्थविरावलि-वन्दन
(५) यशोभद्र स्वामी आचार्य श्रीशय्यम्भव स्वामी के शिष्य और उन्हीं के पट्टधर थे । २२ वर्ष गृहस्थ में, १४ वर्ष संयम - पर्याय में और ५० वर्ष युगप्रधान आचार्यपद में रहे हैं । इस प्रकार कुल ८६ वर्ष की आयु में संयम और संघ सेवा की साधना पूर्ण करके स्वर्गवासी हुए। इनका देवलोक वीर निर्वाण सं० १४८ वर्ष पश्चात् हुआ । आचार्य यशोभद्र स्वामीजी के
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(६) संभूतविजय और भद्रबाहु ये दो शिष्य हुए और दोनों क्रमश: पट्टधर हुए हैं। संभूतविजयजी ४२ वर्ष गृहवास में रहे हैं । ४० वर्ष श्रुत, संयम, और तप की आराधना में लगे रहे तथा ८ वर्ष युगप्रवर्तक आचार्य पदवी को शोभित करते रहे । सर्वायु ६० वर्ष समाप्त करके देवलोक के अतिथि बने । तत्पश्चात् उन्हीं के गुरुभ्राता
(७) भद्रबाहु स्वामी पट्टधर हुए हैं । आप ४५ वर्ष गृहवास में रहे । १७ वर्ष संयम, तप तथा १४ पूर्वो के अध्ययन में लगे रहे । १४ वर्ष युगप्रधान होकर आचार्यपद को विभूषित करके श्रीसंघ की सेवा की । आपने श्रुतज्ञान का अत्यन्त प्रचार किया । महाराजा चन्द्रगुप्त आपका अनन्य सेवक रहा है । आप सर्वायु ७६ वर्ष की समाप्त कर देवलोक सिधारे । वीर निर्वाण सं० १७० वर्ष पश्चात् भद्रबाहुजी स्वामी का देवलोक हुआ ।
(८) स्थूलभद्रजी युगप्रधान आचार्य हुए हैं। आप २० वर्ष गृहवास में रहे हैं । २४ वर्ष साधना में लगे रहे और ४५ वर्ष आचार्य बनकर श्रीसंघ की सेवा की। आपने पूर्वों की विद्या आचार्य श्री भद्रबाहु से प्राप्त की । सर्वायु ६ वर्ष की पूर्ण की। वीर सं० २१५ वर्ष पश्चात् स्वर्ग के वासी हुए । आप अपने युग में कामविजेता हुए हैं । आचार्य प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, सम्भूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र स्वामी ये ६ आचार्य १४ पूर्वों के वेत्ता थे ।
मूलम् — एलावच्च सगोत्तं वंदामि महागिरिं सुहत्थिं च । तत्तो-कोसिअ-गोत्तं, बहुलस्स सरिव्वयं वंदे ॥२७॥ छाया -- एलापत्य - सगोत्रं वन्दे महागिरिं सुहस्तिनञ्च । ततः कौशिकगोत्रं, बहुलस्य सदृग्वयसं वन्दे ॥ २७॥
पदार्थ - एलावच्च - सगोत्तं - एलापत्य गोत्रवाले महागिरिं सुहत्थि च महागिरि और सुहस्ति को वंदामि – वन्दन करता हूं । ततो- तत्पश्चात् कोसियगोत्तं – कौशिक गोत्रीय बहुलस्स - बहुल के सरिव्वयं - समान वय वाले बलिरसह — को वन्दे - वन्दन करता हूं ।
भावार्थ - एलापत्य-गोत्रीय आचार्य महागिरि और प्राचार्य सुहस्तीजी को वन्दन करता हूं । ये दोनों स्थूलभद्रजी के शिष्य हुए हैं। कौशिक गोत्रीय बहुलमुनि के समान वय वाले बलिस्सह को भी मैं ( देववाचक) वन्दन करता हूं ।
टीका - कामविजेता श्रीस्थूलभद्रजी के सुशिष्य एलापत्य गोत्रवाले क्रमशः -
( ६ – १० ) महागिरि और सुहस्ती पट्टधर आचार्य हुए हैं । सुहस्ती आचार्य से लेकर सुस्थित,