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नन्दीसूत्रम्
“संघमन्दरपक्षे तु कान्ता भव्यजनमनोहारित्वाद् विमला,यथावस्थित जीवादि पदार्थ स्वरूपोपलंभात्मकवात्"-अतः संघमेरु वंद्य एवं स्तुत्य है । इस गाथा में वंदामि और विणय-पणो ये दो पद देकर स्तुति कार ने श्रीसंघमेरु का माहात्म्य दिखाया है।
मेरुपर्वत अचल होने से कल्पान्तकाल के महावात से भी कम्पित नहीं होता, श्रीसंघमेरु भी मिथ्यादृष्टियों के द्वारा दिये गये प्राणान्त परीषह-उपसर्गों से कभी भी विचलित नहीं होता । पर्वत प्रायः दूर से ही रम्य प्रतीत होते हैं। जब कि मेरु ने इस उक्तिको निराधार प्रमाणित किया है। वह दुर की अपेक्षा निकटतम में अधिक रमणीक लगता है, किन्तु श्रीसंघमेरु दूर और निकटतम दोनों अवस्थाओं में रमणीक ही है।
प्रकारान्तर से संघमेरु दी स्तुति मूलम्-गुण-रयणुज्जलकडयं, सीलसुगंधितव-मंडिउद्देसं ।
सूय-बारसंग-सिहरं, संघमहामन्दरं वंदे ॥१८॥ छाया-गुणरत्नोज्ज्वल-कटकं, शीलसुगंधितपोमण्डितोद्देशं । ..
श्रुतद्वादशांग-शिखरं, संघमहामन्दरं वन्दे ॥१८॥ पदार्थ-गुणरयणुज्जलकडयं-ज्ञान-दर्शन-चारित्र गुणरूप रत्नों से संघमेरु का मध्यभाग समुज्ज्वल है, सीलसुगंधि-तवमंडिउद्देसं—जिसकी उपत्यकाएं पंचशील से सुरभित हैं और तप से सुशोभित हैं । सुयवारसंगसिहरं-द्वादशांग श्रुतरूप ही जिसका शिखर है, ऐसे विशेषणों से युक्त संघमहामंदरं वंदे-संघ महामन्दरगिरि को मैं वन्दन करता हूँ।
भावार्थ-सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप अनुपम गुणरत्नों से संघमेरु का मध्यभाग समुज्ज्वल है । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन्हें शील कहते हैं । संघमेरु की उपत्यकाएँ शील की सुगंध से सुगंधित हैं और वे तप से सुशोभित हो रही हैं । द्वादशांगश्रुत ही उत्तुंग शिखर है, अन्य संघ से अतिशयवान संघमहामन्दर को मैं अभिवन्दन करता हूँ।
टीका-इस गाथा में संघमेरु को शेष उपमाओं से उपमित किया गया है। जिसकी उपत्यका उज्ज्वल गुणरत्नों से प्रकाशित हो रही है तथा शीलसुगन्धि से सुवासित और तप से सुसज्जित हो रही है। उपत्यका के स्थानीय श्रीसंघ के आसपास रहनेवाले मार्गानुसारी जीव हैं। द्वादशांग गणिपिटक रूपी श्रुतज्ञान ही जिस श्रीसंघमेरु का शिखर है, ऐसे महामंदर को मैं वंदना करता हूँ।
इस गाथा में गुण, शील, तप और श्रुत ये चार गुण ही संघमहामेरु को पूज्य बना रहे हैं । यहाँ गुण शब्द से मूलगुण और उत्तरगुण जानने चाहिए।
शील शब्द से सदाचार, तप शब्द से १२ प्रकार का तप जानना चाहिए तथा श्रुतशब्द से आध्यात्मिक श्रुत, ये ही संघमेरु की विशेषताएं हैं।