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________________ संघपद्म-स्तुति तप शब्द से बारह प्रकार का तप जानना चाहिए। नियम शब्द से अभिग्रह विशेष अथवा कुछ समय के लिए इच्छाओं का रोकना तप है और आजीवन इच्छाओं का निरोध करना नियम है । अतः इन दोनों को स्तुतिकार ने अश्व की उपमा से उपमित किया है। श्रीसंघ-रथ के ये दोनों तप-नियम अश्व रूप होने से मोक्ष पथ में शीघ्रता से गमन कर रहे हैं। संघ रहस्स भगवो -संघरथ भगवान् का भद्र हो। इस कथन से संघरथ ऐश्वर्ययुक्त होने से भगवान शब्द से उपमित किया गया है। पताका, अश्व और नन्दिघोष, इन तीनों को क्रमशः शील, तपनियम और स्वाध्याय से उपमित किया गया है। मोक्ष-पथ का जो राही हो, उसे नियमेन संघरथ पर आरूढ होना ही चाहिए । जब तक मंजिल दर होती है तब तक उसे पाने के लिए राही ऐसे साधन का सहयोग लेता है जो कि शीघ्र, निर्वि आनन्दपूर्वक पहुंचा दे । मोक्ष में जाने के लिए भी सर्वोत्तम साधन श्रीसंघ रथ ही है। अत: श्रीसंघ के सदस्यों को चाहिए कि वे अपने कर्तव्य की ओर विशेष ध्यान दें। संघपदा-स्तुति मूलम्-कम्मरय-जलोहविणिग्गयस्स, सुयरयण-दीहनालस्स । पंच-महव्वय थिरकन्नियस्स, गुणकेसरालस्स ॥७॥ सावग-जण-महुअरिपरिवुडस्स, जिणसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भई, समणगण-सहस्स-पत्तस्स ॥८॥ -कर्मरजो-जलौघ-विनर्गतस्य, श्रुतरत्न-दीर्घ-नालस्य। . पञ्च-महाव्रत-स्थिर-कणिकस्य, गुणकेसरवतः ॥७॥ श्रावक-मधुकरि-परिवृतस्य, जिन-सूर्य-तेजो-बुद्धस्य । संघ-पद्मस्य भद्रं, श्रमण-गण-सहस्र-पत्रस्य ।।८।। पदार्थ-कम्मरय-जलोह-विणिग्गयस्स-जो संघपद्म कर्मरूप रज तथा जल-प्रवाह से बाहिर निकला हुआ है, सुयरयण-दीहनालस्स-जिस की श्रुतरत्नमय लंबी नाल है, पंच महब्वय थिरकन्नियस्सजिस की पांच महावत ही स्थिर कणिकाएं हैं, गुणकेसरालस्स-उत्तरगुण-क्षमा-मार्दव-आर्जव-संतोष आदि जिस के पराग हैं, सावग-जण-महुअरि-परिवुडस्स-जो संघपद्म सुश्रावक जन-भ्रमरों से परिवृत्त-घिरा हुआ है, जिणसूर-तेयबुद्धस्स-जो तीर्थंकर रूप सूर्य के केवलज्ञानालोक से विकसित है, समणगणसहस्सपत्तस्सश्रमण समूह रूप हजार पत्रवाले, संघपउमस्स भई---इस प्रकार के विशेषणों से युक्त, उस संघपद्म का भद्र हो। भावार्थ-जो संघपद्म कर्मरज-कर्दम तथा जल-प्रवाह दोनों से बाहिर निकला हुआ है-अलिप्त है। जिस का आधार ही श्रुत-रत्नमय लम्बी नाल है, पांच महाव्रत ही
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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