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________________ नन्दीसूत्रम् गुणस्थान में सिर्फ एक सातावेदनीय कर्म का ही बन्ध होता है। केवल अयोगी केवली ही अबन्धक होते हैं। इस विषय को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित गाथाएँ हैं "सत्तविह बन्धगा होन्ति, पाणिणो भाउ बजगाणं तु । तह सुहुम संपराया छव्विह बन्धा विणिट्ठिा ॥१॥ मोह-प्राउ-वजाणं पगडीणं ते उ बन्धगा भणिया। उवसन्त-खीण-मोहा, केवलियो एगविह बन्धगा ॥२॥ . तं पुण समय ठिइस्स बन्धगा, न उण संपरायस्स। ' सेलेसी पडिवण्णा अबन्धगा होन्ति, विएणेया ॥३॥" इन गाथाओं का भाव ऊपर दिया जा चुका है। इससे सिद्ध हुआ कि श्रीमहावीर भगवान्, संसारातीत होने से कल्याणरूप हैं। इस गाथा में वीर के साथ चार विशेषण दिये हुए हैं जो चारों षष्ठ्यन्त हैं, चारों चरणों में चार बार 'भ' का प्रयोग किया है। इसका आशय यह है-चारों में से किसी एक में भी कल्याण है, कि पूनः यदि चारों ही विशेषण जीवन में घटित हो जाएँ तब तो सोने में सुगन्धि की उक्ति चरितार्थ हो जाती है। यथार्थ स्तुति करने से भक्तजनों का कल्याण भी सुनिश्चित ही है । संघनगर-स्तुति मूलम्-गुण-भवण-गहण ! सुयरयण-भरिय ! दंसणविसुद्धरत्थागा। संघनगर ! भदं ते, अखण्ड-चारित्त-पागारा ॥४॥ छाया-गुणभवन-गहन ! श्रुतरत्न-भृत ! दर्शन-विशुद्धरथ्याक ! ' संघनगर ! भद्रते, अखण्ड-चारित्र-प्राकार ! ॥४॥ पदार्थ-संघनगर । भहते-हे संघनगर ! तेरा भद्र-कल्याण हो, गुण-भवण-गहण-संघनगर उत्तर-गुण भव्य-भवनों से गहन है, सुयरयणभरिय जो कि श्रुतरत्नों से परिपूर्ण है, दंसणविसुद्धरत्यागाविशुद्ध सम्यक्त्व ही स्वच्छ राजमार्ग एवं वीथियों से सुशोभित है, अखण्ड चारित्त-पागारा --अखण्ड चारित्र ही चारों ओर अभेद्य प्रकोटा है, ऐसा संघनगर ही कल्याण-प्रद हो सकता है । भावार्थ-पिण्ड विशुद्धि, समिति, भावना, तप आदि भव्य-भवनों से संघनगर व्याप्त है । श्रुत-शास्त्र रत्नों से भरा हुआ है, विशुद्ध सम्यक्त्व ही स्वच्छ वीथियां हैं, निरतिचार मूलगुण रूप चारित्र ही जिसके चारों ओर प्रकोटा है, इन विशेषताओं से युक्त हे संघनगर! तेरा भद्र हो। टीका--इस गाथा में श्रीसंघ को नगर से उपमित किया है, जैसे-नगर में प्रचुर और गगनचुंबी भवन होते हैं । गली एवं बाजार व्यवस्थित होते हैं। वहां समाज सुशिक्षित, सभ्य और पुण्यशाली मानव र न
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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