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________________ ६३ जिस समय आगम लिपिबद्ध किए गए, उस समय ६४ आगम विद्यमान थे। काल दोष से उन में से भी अधिकतर व्यवच्छिन्न हो गए हैं। वर्तमान काल में ४५ आगम हैं। श्वेताम्बर मन्दिर मार्गी उपलब्ध सभी आगमों को प्रामाणिकता देते हैं, जब कि श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन और श्वेताम्बर तेरापन्थ जैन उक्त संख्यक आगमों में से ३२ आगमों को प्रामाणिकता देते हैं । दिगम्बर जैन के मान्य शास्त्रों में उपर्युक्त आगमों के नाम तो मिलते हैं, किन्तु उन्हें मान्यता देने से वे सर्वथा इन्कार करते हैं। उन का विश्वास है कि १२ अङ्ग और १२ उपाङ्ग तथा चार मूल और चार छेद इत्यादि सभी आगम काल दोष से व्यवच्छिन्न हो गए हैं। जिन आगमों में स्त्रीमुक्ति, केवलीभुक्ति और वस्त्र पात्र का उल्लेख आया, उन्हें मानने से उन्होंने सर्वथा इन्कार कर दिया । सम्भव है, उक्त आगमों को मान्यता न देने से मुख्य कारण यही रहा हो । आधुनिक किन्हीं विद्वानों की मान्यता है कि नन्दी के रचयिता देववाचक हुए हैं और आगमों को लिपिबद्ध करने वाले देवगणी हुए हैं। अतः उक्त दो महानुभाव अलग-अलग समय में हुए हैं. एक ही व्यक्ति नहीं किन्तु उन की यह धारणा हृदयंगम नहीं होती, क्योंकि देववाचक जी ने नन्दी की स्थविरावलि में दूष्यगणी तक ही अनुयोगधर आचार्य और वाचकों की नामावलि का उल्लेख किया है। काश्यप गोत्री देवगिणी क्षमाश्रमण दूष्यगणी के पट्टधर आचार्य हुए हैं। अतः सिद्ध हुआ, देववाचक और और देवगिणी एक ही व्यक्ति के अपर नाम और पदवी है जो पहले देववाचक के नाम से ख्यात थे, वे ही देवद्विगणी क्षमाश्रमण के नाम से आगे चलकर विख्यात हुए किसी अज्ञात मुनिवर ने कल्पसूत्र की स्थविरावल में लिखा है सुत्तत्रयण भरिए, खम-दम मद्दव गुणेहिं सम्पन्ने । देव खमासमणे, कासवगुत्ते पणिवयामि ॥ अर्थात जो सूत्र ओर अर्थ रूप रत्नों से समृद्ध, क्षमा, दान्त, मार्दव आदि अनेक गुणों से सम्पन्न हैं, ऐसे काश्यप गोत्री देवद्धिगणी क्षमाश्रमण को मैं सविधि वन्दन करता हूं । नन्दी सूत्र के संकलन करने वाले तथा आगमों को लिपिबद्ध करने वाले देवद्धिगणीजी को लगभग १५०० वर्ष होगए हैं। आजकल जो भी आगम उपलब्ध हैं, इस का श्रेय उन्हीं को मिला है । आराधना के प्रकार जिस से आत्मा की वैभाविक पर्याय निवृत्त होजाए और स्वाभाविक पर्याय में परिरगति हो जाए, उसे आराधना कहते हैं । अथवा आध्यात्मिक दृष्टि से साधना में उतीर्ण होजाना ही आराधना है। वह दो प्रकार की होती है-धार्मिक आराधना और केवल आराधना धर्म ध्यान के द्वारा जो आराधना होती है, उसे धार्मिक आराधना कहते हैं । जो शुक्ल ध्यान के द्वारा आराधना की जाए, वह केवलिआराधना कहलाती है। धार्मिक आराधना भी दो प्रकार से की जाती है एक श्रुतधर्म से और दूसरी चारित्र धर्म से सम्यवत्व सहित आगमों का विधिपूर्वक अध्ययन करना श्रुतधर्म कहलाता है। श्रुतज्ञान जितना प्रबल होगा, उतना ही चारित्र प्रबल होगा । जैसे प्रकाश सहित चक्षुमान व्यक्ति सभी प्रकार की क्रियाएं कर सकता है, किसी भी सूक्ष्म व स्थूल क्रिया करने में उपे कोई बाधा नहीं आती, वैसे हो सम्यम् १ देखो स्थानाङ्ग सूत्र, स्था० २०४
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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