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________________ तीन मित्रों का दृष्टान्त जइ वा तिण्णि मणूसा, जंतडविपहं सहावगमणेणं । वेलाइक्कमभीआ, तुरंति पत्ता य दो चोरा दट्टं मग्गतडत्ये, तत्थेगो मग्गओ पडिनियत्तो बीओ गहिओ तइओ, समइक्कंतो पुरं पत्तो अडवी भवो मणूसा, जीवा कम्पट्ठिई पहो दीहो । गंठी अ भट्ठाणं, रागद्दोसा य दो चोरा भग्गो ठिइपरिवुड्डी, गहिओ पुण गठिओ गओ तइओ । सम्मत्तपुरं एवं, जोइज्जा तिन्नि करणाई ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ 118 11 पू. श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण महाराज विशेषावश्यक भाष्य में ३ मित्रों के दृष्टान्त के विषय में कहते हैं कि ... तीन मित्र मिलकर धनोपार्जन - व्यापार हेतु अन्यदेश जा रहे थे । रास्ते के जंगल में उन्हें तीन चोर मिल गए। सदा जंगल में ही रहनेवाले ये चोर लूटेरे किसी भी पथिक को लूटने-मारने का ही काम करते थे । इन मित्रों में से पहला मित्र अटवी में आगे बढा .... , और जैसे ही इन चोर लूटेरों का राक्षसी - भयंकर रूप देखा... वह देखते हां प्रथम मित्र घबराकर वहाँ से नौं- दो- ग्यारह हो गया। सीधा ही पलायन हो गया । फिर दूसरा मित्र आगे बढा । वह उन लूटेरों का राक्षसी - भयंकर रूप देखकर उन्हीं की शरण में वहीं बैठ गया । वापिस जाने का नाम लेने के लिए भी तैयार नहीं था । तीसरा मित्र बडा ही हिम्मतवाला था। वह भी आगे बढा और लूटेरे - चोरों का भयंकर विकराल रूप देखकर भी डरा नहीं । धबराया नहीं । और निश्चय कर लेता है कि... जब वैसे भी मरना ही है तो क्यों न अन्तिम श्वास तक लहूँ ? मार के ही मरूँगा । इस दृढ विचारों से वह उन चोरों के साथ घमासान युद्ध खेलता रहा । जान हथेली में लेकर युद्ध खेलता रहा । अपनी संपूर्ण शक्ति-बुद्धि लगाकर लडते हुए आखिर तीसरे मित्र ने उन चोरों पर विजय पाई और उन्हें हराकर आगे बढा । मार्ग के अवरोधक लूटेरों के मर जाने से तथा विजय प्राप्त करने के विजयोल्लास के आनन्द - उत्साह में आगे बढा । इस दृष्टान्त के उपनय में प्रस्तुत यथाप्रवृत्तिकरण का विषय समझिए । जो भयंकर अटवी है वैसा यह संसार है। मार्ग यह मोक्ष मार्ग है। जो आत्मा को मोक्ष तक पहुँचाता है । परन्तु बीच में अवरोधक राग- -द्वेष रूपी लूटेरे चोर मिलें। इन राग-द्वेष की इतनी मजबूत गांठ थी कि इसे अभेद्य मानकर प्रथम मित्र जैसा भव्य या अभव्य की कक्षा का सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण ४९७
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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