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के लिए, या आत्मा की सर्वोत्कृष्ट शक्ति, या स्वरूप के आविर्भाव के लिए पहले की अपेक्षा परिणामों की वृद्धि-विशुद्धि निर्माण होती है। उससे जीव चरमावर्तकाल में ही "मार्गानुसारी” बनकर गुणों को लाने की कोशिष करता है। यह इच्छा जीव को मार्गसन्मुखी बनाती है । यहाँ मार्ग शब्द का अर्थ धर्म लिया है । वास्तव में जीव पूर्ण धर्मी नहीं बनता है, परन्तु धर्मी बनने की योग्यता पात्रता निर्माण करता है । जो वास्तविक धर्म के लिए भूमिकास्वरूप है। इससे धर्ममार्ग को अनुसरने की योग्यता प्राप्त करता है । यह धर्मसन्मुखीकरण का योग्य काल है ।
यथाप्रवृत्तिकरण
करण शब्द यहाँ पर आत्मा की शक्ति, लब्धिविशेष अर्थ में है । मिथ्यात्व के प्रथम . गुणस्थान से जीव जब बाहर निकलकर छलांग लगाकर चौथे गुणस्थान पर पहुंचकर सम्यक्त्व प्राप्त करता है तब उसे यथाप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण-अनिवृत्तिकरण आदि करणों को करते हुए पसार होना पडता है । इन करणों को करना अर्थात् आत्मा को वैसी शक्ति का स्फुरण करते हुए आगे बढना पडता है। इन करणों में सर्वप्रथम करण यथाप्रवृत्तिकरण है । यथा + प्रवृत्ति + करण इन तीन शब्दों के संयोजन से एक पूरा शब्द बना है यथाप्रवृत्तिकरण । यथा अर्थात् जैसी प्रवृत्ति अर्थात् क्रियात्मक व्यवहार । अर्थात् भूतकाल-पूर्वकाल में जीव जैसी कर्म क्षय की प्रवृत्ति अकामनिर्जरावश होकर भी करता था, वैसी ही कर्म खपाने की यथार्थप्रवृत्ति-प्रवृत्तिविशेषरूप से करता हुआ कर्मक्षय के लिए आगे बढना इसे यथाप्रवृत्तिकरण कहते हैं। अनादि काल से संसार में जीव कर्म बांधता भोगता और खपाता ही रहता है । विशेष रूप से अब कर्मक्षय करने की दिशा में प्रबल शक्ति स्फुरायमान करता हुआ जीव आगे आगे बढ़ता है । परवश-पराधीन होकर .. अनिच्छा होते हुए भी भूख-प्यास-धूप-तेज-गरमी-ठंडी दुःखादि सहन करने पडते हैं। उसमें जिन कर्मों की निर्जरा होती है वह अकाम निर्जरा कहलाती है। घोडे-बैल हाथी-ऊँट... गाय-भैंसादि जानवर भी अपनी शक्ति के बाहर माल खींचना, गाडी को गले में बांधकर दौडना, खेती करना, अपनी शक्ति से काफी ज्यादा माल उठाना, इच्छा न होते हुए भी अपने दूधादि देना इत्यादि अनेक प्रवृत्तियों में मार खाना और भूख-प्यास-धूप-तेज गरमी-ठंडी तथा चाबूकें आदि सहन करना... इच्छा न होते हुए भी पराधीनतावश, परवशरूप में भी सहन करने आदि निमित्त से कर्मों का कटना, कम होना, क्षय-क्षयोपशम होना यह अकाम निर्जरा कहलाती है । ऐसी अकाम निर्जरा करता
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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