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________________ उपयोगी सिद्ध होता है । जब भव्यत्व के साथ मोक्षगमन योग्य ऐसे सुयोग्य काल का योग मिलता है तब वह “तथाभव्यत्व" होकर मोक्षरूप फल प्रदान करता है। ३) नियति या भवितव्यता भव्यत्व और काल का योग हो जाने पर भी न्यूनाधिकता के बिना भी नियत प्रवृत्ति करानेवाली “नियति" भवितव्यतारूप तीसरा कारण भी सहयोगी बनकर साथ जुडता है । इस भवितव्यता के कालादि योग के साथ मिलकर तथाभव्यतारूप भवितव्यता का जो और जैसा स्वरूप हो उसके अनुरूप ही उस आत्मा का प्रयत्न विशेष होगा और उसी से उस आत्मा का मोक्षगमन होगा। ४) पूर्वकृत कर्म भूतकाल या पूर्वकाल या पूर्व भवों के उपार्जित जिन कर्मों के रस-स्थिति आदि की अशुभता घटती जाय और जिन कर्मों के उदय से शुभ आशय, शुभ अध्यवसायों का अनुभव होता जाय और जिस कर्म को भोगते हुए.... शुभ-कर्म का बंध होता ही जाय वैसा पूर्वकृत कर्म... अर्थात् अशुभ कर्मों की क्षीणता और शुभ कर्मों की वृद्धि हो वैसे कर्मों का योग होता रहे, इससे भी जीव का भव्यत्व तथाभव्यत्व के रूप में परिणत होकर मोक्षफल देता है । इस तरह तथाभव्यत्व की परिपक्वता में पूर्वकृत शुभकर्म का योग भी सहयोगी कारण बनता है। ५) पुरुषार्थ___पाँच समवायि कारणों में पाँचवा कारण पुरुषार्थ है । एकमात्र कर्म के आश्रित होकर ही बैठा नहीं जाता है । पुरुषार्थ का भी विशेष योग बढना ही चाहिए । विशिष्ट प्रकार के पुण्यकर्मवाला, महाशुभ आशयवाला, विशिष्ट तत्त्वों को समझने की शक्तिवाला और श्रवण किये हुए जीवादि नौं तत्त्वों के अर्थ का ज्ञान प्राप्त करने में कुशल ऐसा पुरुष(आत्मा)विशेष .... अर्थात् पूर्वोक्त कालादि-कर्मादि चारों प्रकार के समवायिकारणों का योग होने से जिसका शुद्ध स्वरूप कुछ अंश में प्रकट हुआ हो ऐसा पुरुषविशेष से शुद्ध पुरुषार्थ होना संभव है । इस तरह पुरुष अर्थात् ऐसा आत्मा के पुरुषार्थ उद्यम का योग होने से तथाभव्यत्व के परिपाक से मोक्ष संभव बनता है। सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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