________________
कोई तीर्थंकर किसी कालादि के संयोग विशेष में ही तीर्थंकर बनते हैं । सिद्ध भी बनते हैं । जबकि दूसरे तीर्थंकर अन्य काल-क्षेत्रादि में निश्चित समय में ही होते हैं, जैसे भगवान आदिनाथ तीसरे आरे में ५०० धनुष्य की कायावाले और ८४ लाख पूर्व की आयुष्य स्थितिवाले थे। जबकि भगवान महावीर प्रभु ४ थे आरे के अन्त में ७ हाथ की कायावाले
और सिर्फ ७२ वर्ष के ही आयुवाले हुए, तथा सीमंधर स्वामी आदि महाविदेह में हुए । तथा आदिनाथादि कब के पहले ही मोक्ष में जा चुके हैं और सीमंधरस्वामी आदि अभी भी मोक्ष में जाने शेष हैं। किसी तीर्थंकर के जीव ने १ पद से तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया और किसी तीर्थंकर ने वीशस्थानक के बीसों पदों की आराधना करके तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया। ये सब भित्र-भिन्न विशेषता द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादि कारणों पर आधारित सब की तथाभव्यता भित्र-भिन्न प्रकार की है। यदि सबकी तथाभव्यता भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट न मानों तो सभी जीव एक ही जगह से एक ही साथ एक ही काल मोक्ष में चले जाएंगे ऐसा होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है, यही तथाभव्यता का प्रमाण है । यही सिद्ध करता है कि सभी जीवों की तथाभव्यता भित्र भिन्न प्रकार की है। इसीलिए सब को आत्मविकास में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप निमित्त भी अलग-अलग प्राप्त होते हैं । तथाभव्यत्व के स्वाभाविक क्रम से उन उन जीवों को सम्यग् दर्शनादि प्राप्त होता है। इसी प्रकार उन-उन जीवों के तमाम गुण-अपुनर्बंधकपना, मार्गानुसारिता, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति, देशविरति, सर्वविरति, सयोगी केवलीपना, सिद्धत्व आदि भी तथाभव्यता के अनुसार ही प्राप्त होते हैं । किसी किसी जीव की तथाभव्यता ही ऐसी विशिष्ट कक्षा की होती है कि... बाह्य निमित्तों के योग-संयोग के बिना भी गुणादि प्रकट होते हैं । और किसी किसी जीवविशेष की तथाभव्यता ऐसी होती है कि उनको बाह्य निमित्तों के योग-संयोग से ही वैसे सम्यग् दर्शनादि गुण प्रकट होते हैं। जैसे कई रोग बाह्य उपचार आदि से ही मिटते हैं और कई रोग अपने आप ही मिट भी जाते हैं।
२) काल
जिस तरह ग्रीष्म ऋतु में ही आम पकते हैं, पतझड ऋतु में पत्ते गिरते हैं । वसन्त ऋतु वनस्पतियों पर नए फलादि के आगमन में कारण बनती है । इसी तरह प्रस्तुत प्रकरण के अनुसंधान में भव्यत्वरूप वृक्ष को मोक्षरूपी फलवाला बनानेवाला चरमावर्तकाल सुयोग्य काल है। उसमें भी चरमावर्तकाल में से भी कोई विशिष्ट उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल या फिर उसमें भी मोक्षप्राप्ति में उपयोगी ऐसा दुःषम-सुषम के चौथे आरे का काल, विशेष
४९०
आध्यात्मिक विकास यात्रा