________________
तीव्र रूप में मिलने पर इस ग्रीष्मऋतु के धान्यबीज वर्षाऋतु के धान्य बीजों के जैसे नहीं उग पाए। अतः वर्षाऋतु के धान्यबीजों का तथाभव्यत्व, ग्रीष्मऋतु के धान्यबीजों के तथाभव्यत्व से सर्वथा भिन्न प्रकार का होगा । ठीक इसी तरह मोक्षगामी सभी भव्य जीवों का तथाभव्यत्व भिन्न भिन्न प्रकार का होता है। किसी जीवविशेष को तीर्थंकर परमात्मा का योग, समवसरण में देशना श्रवण करने का अवसरादि रूप सहयोग प्राप्त होगा और किसी जीव को गुरुओं का योग प्राप्त होता है। और किसी जीव के अनार्यभूमि में रहने के कारण देव-गुरु का कोई योग प्राप्त नहीं होता है, किसी जीव को ४ थे आरे का योग प्राप्त होता है जब स्वयं तीर्थंकर परमात्मा विद्यमान होते हैं, और किसी जीव को पाँचवे
आरे काथ्योग प्राप्त होता है, जब तीर्थंकरादि का योग सर्वथा प्राप्त ही नहीं होता है, और किसी जीव को छटे आरे का योग प्राप्त होता है जब किसी भी प्रकार के धर्मादि की कोई संभावना ही नहीं रहती है। इस तरह के कालादि सहयोगी कारणों की प्राप्ति की सानुकूलता-प्रतिकूलतादि, तथा न्यूनाधिकतादि, योग्यायोग्यता की प्राप्ति के आधार पर . जीवों के तथाभव्यत्व की परिपक्वता में तरतमता रूप भेद अवश्य दिखाई देता है।
जिस तरह से खिचडी का तपेला, छाणे की अग्नि पर रखा जाय या कोयले की अग्नि पर रखा जाय, या गेस की अग्नि पर रखा जाय, या तेज स्टव की अग्नि पर रखा जाय, उस अग्नि के प्रमाण, तीव्रता, मन्दता के आधार पर खिचडी बनने में कम-ज्यादा समय लगेगा। ठीक उसी तरह भव्य जीवों की भव्यता एकसमान एकरूप होते हुए भी तथाभव्यत्व सभी जीवों का भिन्न-भिन्न सहयोगी कारणों की प्राप्ति के आधार पर होता है । इसालिए तथाभव्यत्व “परिपक्व" करने का कहा गया है, परिपक्व करने का सीधा अर्थ है सहयोगी कारणों की प्राप्ति पर वैसा बनाना। तैयार करना-परिपक्व करना कहलाता है। ___ जीवात्मा अनादि काल से अनन्त काल तक जिन-जिन जीवन क्रमों में से पसार होती है वे आत्मा की तथाभव्यता है। सभी जीवों की तथाभव्यता भिन्न-भिन्न होने के कारण सभी भिन्न-भिन्न विशेषता तथा व्यक्तित्व संभवित होता है। यदि ऐसा न मानें तो सभी जीवों की एक ही साथ एक ही प्रकार की परिस्थिति होती । लेकिन वैसी नहीं होती है अतः सभी की तथाभव्यता भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है । सभी भव्यात्माओं में गुणों आदि की समानता एकरूप एक समान होने पर भी अपनी अपनी विशेषताएं भिन्न-भिन्न होती हैं। ये सभी व्यक्तिगत विशेषताएं अपनी स्वतंत्र तथाभव्यतारूप होती हैं । उदा. तीर्थंकरपने का गुण सभी तीर्थंकर भगवंतों में सर्वसामान्यरूप से एकसमान होने पर भी
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
४८९