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सिद्धि कहाय रे”... जगतारक प्रभु विनवू “अर्थात् योगबीज प्राप्त होने के पश्चात बाधक भाव सब दूर हो जाते हैं और साधक भावों का प्रसार होने लगता है । इन योगबीजों में सर्वप्रथम बीज के रूप में "श्री वीतराग परमात्मा की भक्ति" बताकर सर्वोत्कृष्ट विशेषता सूचित की है। उसमें भी प्राथमिक अवस्था में द्रव्यभक्ति की प्राधान्यता रहती है । भाव भक्ति यहाँ गौण रहती है।
बीज कथा का प्रेम---शुद्ध श्रद्धा-योग के बीजों की कथा सुनते ही अत्यन्त उल्लसित मन हो जाय, उत्साह बढे, सत्य है ऐसी श्रद्धा जगे, यह भी योगबीज है। इसीलिए योगबीजवाले योगी जब जब तत्त्व श्रवण करते हैं तब तब उनको आनन्द आता है। रोम-रोम खडे हो जाते हैं । अंतरात्मा झूम उठती है । आ... हा...कितने अद्भुत अनोखे तत्त्व हैं... वाह.... वाह.... सर्वज्ञ प्रभु ने कितनी ऊँची महत्व की सही बात कही है। यद्यपि यहाँ सम्यग् दर्शन के घर की रुचि नहीं है परन्तु इस रुचि को खींच लावे ऐसी “तत्त्वरुचि” जरूर है । बीजकथा सुनते ही योग के वे बीज अत्यन्त उपादेय आचरने योग्य लगे, रुचि जगे, उसपर आदर सद्भाव जगना चाहिए।
श्रेष्ठ सम्यक्त्व की प्राप्ति के ५ कारण- .
विशिष्ट सम्यक्त्व की प्राप्तिरूप जो बोधिलाभ उसकी प्राप्ति के लिए १) तथाभव्यत्व, २) काल, ३) नियति (भवितव्यता), ४) कर्म, और ५) पुरुषार्थ इन पाँच भावों का योग होने से संभावना बढती है ।
१) तथाभव्यत्व
योग्यता चेह विज्ञेया, बीजसिद्ध्यापेक्षया।
आत्मनः सहजा चित्रा, तथाभव्यत्वमित्यतः ।। २७८ योगबिन्दु ।। ... आत्मा का मोक्षगमन योग्य जो सहज स्वभाव उसे भव्यपना कहते हैं । जैसे एक बीज में वृक्ष बनने की पूरी योग्यता पड़ी हुई है । मात्र सहयोगी सभी कारणों की प्राप्ति होनी चाहिए। हवा-पानी-प्रकाश-जमीन-खादादि सहयोगी के मिलते बीज एक दिन-विराट वृक्ष बनता है। ठीक उसी तरह योग्य तथाप्रकार की मोक्षगमनयोग्य योग्यता-भव्यता–युक्त जीव को सहयोगी कारणों की अनुकूलतारूप देव-गुरु-धर्मादि
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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