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________________ २) मार्गाभिमुखभाव- पूर्वोक्त क्षयोपशमरूप मार्ग के सन्मुख जाना ३) मार्गपतितभाव-पूर्वोक्त क्षयोपशमवाला-गुणवृद्धिवाला जीव ४) मार्गानुसारी जीव-अन्तिम यथाप्रवृत्तिकरण में प्रवर्तमान जीव । इन सब आदिधार्मिक जीवों में मिथ्यात्वभाव होते हुए भी “माध्यस्थ” इतना सुंदर पड़ा हुआ है कि जिसके कारण जीव को धर्मदेशना का अधिकारी कहा है । धर्मदेशना के लिए सर्वथा अयोग्य तो मिथ्यात्वी है ऐसे जीव कदाग्रह-दुराग्रहग्रस्त होते हैं। मिथ्यात्व के प्रथम गुणस्थान में भी योग की दृष्टि प्रगट होती है । अतः वह दृष्टि उनके लिए भी गुणप्रापक बनती है। अतः उनमें भी सत्यान्वेषक बुद्धि तथा तटस्थ-निष्पक्षपात का भाव होता है । चाहे वह जैन हो या अजैन कुलोत्पन्न हो । जैसे गन्ने का रस कितना मीठा होता है, उसे भी उबाल कर आधा ही रखा जाय तो मीठेपन की मात्रा और दुगुनी हो जाती है, और ज्यादा उबाल-उबालकर पाव भाग ही मात्र रखा हो तो मीठापन चौगुना बन जाता है और .... अन्त में गुड ही बना दिया जाय तो मीठापन कितना गुना ज्यादा बढ़ जाता है। ठीक उसी तरह योगदृष्टियाँ आठ हैं। उत्तरोत्तर गुणवाली-मित्रा, तारा, बला, दीप्रा इन चार प्रकार की योगदृष्टियाँ क्रमशः प्रगट होती है। (जिनका वर्णन पहले किया है) अज्ञानी मिथ्यात्वी जीव भी मिथ्यात्व की मन्दता के कारण प्रगटे हुए माध्यस्थवृति तत्त्वजिज्ञासादि गुणों के कारण धर्मश्रवण के लिए योग्य गिना जाता है । फिर उससे भी ज्यादा विशेष गुणवान ऐसा दुराग्रहरहित जीव तो विशेष योग्य पात्र गिना जाएगा। आदि धार्मिक जीव उनके मंद मिथ्यात्व के प्रगट हुए उनके कितने गुणों के कारण धर्मदेशनादि श्रवणार्थ योग्यता-पात्रता प्राप्त करता है। मार्गाभिमुख और मार्गपतित ये दोनों अवस्थाएं अपुनबंधक भाव आने के पश्चात ही आती है। यह एक मत है। दूसरे मत में पहले भी बताई गई है। योगबिन्दुपंचसूत्र-पंचाशक में सामान्य दो मत के विचार दिखाई देते हैं। धर्म का बाल्य एवं यौवन काल अचरमो परिअडेसुं, कालो भवबालकालमो भणिओ। चरमो अधम्मजुवण, कालो तह चित्तभेओत्ति ॥ ...... ता बीअपुवकालो, णेओ भवबालकाल एवेह। इयरो उ धम्मजुव्वण-कालो विहिलिंगगम्मुत्ति ॥ सम्यक्त्वगुणस्थान पर आराहण ४८३
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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