SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करना। उठना, सामने जाना, भेजने जाना, सद्भाव, अहोभाव और पूज्यभावपूर्वक सेवा-शुश्रूषा-नम्रतापूर्वक करना । इसी तरह कोई भी अतिथि के आगमन पर उन्हें भोजनादि द्वारा तृप्त करना । उनकी भी आवश्यकताएं पूर्ण करना । पूरा आगत-स्वागत करना। गुणप्रधान २५) कृतज्ञतागुण- जीवन में गुणों का विकास करना चाहिए। कृतज्ञता एक गुण है । हमारे ऊपर जिन्हों ने भी उपकार किया हो उनके उपकार को भूलें नहीं, सदा याद रखें और उपकार का ऋण चुकाने का पूरा लक्ष रखें । एक नारियल-श्रीफल भी बचपन में पानी सींचनेवाले को अवसर आने पर अपना मीठा पानी देता है । वैसे ही उपकारी के ऋण चुकाने के लिए सदा तरसना चाहिए । उनके उपकार को सदा मानते हुए नम्रतापूर्वक कृतज्ञता का भाव व्यक्त करना। . २६) समर्पण- समर्पित होने के लिए या समर्पण करने की पूरी तैयारी रखनी चाहिए । समर्पण भाव शर्तरहित ही होना चाहिए । याद रखिए, पूर्ण समर्पण भाव में पूर्ण नम्रता व्यक्त होती है। सर्वथा समर्पित होनेवाला सब कुछ पाता है। अतः इस गुण को विकसाना चाहिए। २७) न्याय-नीतिमत्ता-न्याय-नीतिमत्ता यह सत्य की खाण है । अनेक गुणों का आधारभूत गुण है । भावि में जो लोकोत्तर धर्म प्राप्त करना है उसकी आधारशिला समान है । एक मात्र व्यापार क्षेत्र में ही नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र में लेन-देन आदि के व्यवहार में पूर्णरूप से न्याय एवं नैतिकतापूर्वक आचरण करना । निरर्थक किसी को ठगना, लूटना या विश्वासघात करना बडा अपराध है। भेलसेलादि न करना। इस गुण के न विकसाने से समाज में अप्रतिष्ठा-अपकीर्ति-बदनामी बढती है। अतः जीवन के सर्व क्षेत्र में न्याय-नीतिमत्ता बढानी ही चाहिए। ऐसी नीति बनाकर न्यायोपार्जित द्रव्य ही प्राप्त करना चाहिए। वही सुख-शान्ति निश्चिन्तता देनेवाला बनता है। २८) पापभीस्ता- सबसे श्रेष्ठ और सबसे बडा, अत्यन्त महत्वपूर्ण गुण है पापभीरुता । इसके आने से अन्य कई गुण अपने आप आते हैं। किसी भी पाप के करने के पहले भय निर्माण होना चाहिए । अरे, मैं पाप करता तो हूँ परन्तु इसका कितना भारी ४७६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy