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________________ પુષ્પ પૂજા ચંદનપૂજા, Best Gya ४७० Π मोक्ष चरमफल की प्राप्ति का नाम है। इस मोक्ष की प्राप्ति तक आत्मा को आगे बढानेवाला, आगे ले जानेवाले मार्ग को मोक्षमार्ग कहते हैं । यहाँ मार्ग शब्द मात्र रास्तां अर्थ में नहीं है। मार्ग को ही धर्म कहा है। आगे बढाने, ले जाने अर्थ में मार्ग शब्द है । परन्तु मार्ग शब्द के आगे मोक्ष शब्द जुडा हुआ है अतः धर्म के अर्थ में व्यवहार होगा । ऐसे मोक्ष की प्राप्ति करानेवाले मार्ग का अनुसरण करने की शुरुआत पहले मिथ्यात्व के गुणस्थान पर ही हो जाती है। वहीं ऐसी प्रवृत्ति और गुणादि का सुयोग्य व्यवहार-आचरणादि करता है । वैसा शुद्ध धर्मी बना नहीं है परन्तु वैसे बनने की दिशा अनुसरण करता है । अतः मार्गानुसारी कहलाता है । 1 1 बच्चा शादी के योग्य बनने में १८ - २० वर्ष का काल लेता है । तब योग्यता आती है। छोटे बच्चे को आज ही ५० लाख की पूंजीवाली दुकान की जिम्मेदारी सुपूर्द नहीं की जा सकती । योग्यता–पात्रता वैसी बनने के बाद ही यह सब कुछ सम्भव हो सकता है । अतः वैसी योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। ठीक उसी तरह जिनेश्वर परमात्मा कें सम्यग् धर्म का आचरण करने के लिए वैसा योग्य पात्र बनने के लिए प्रथम मार्गानुसारीपने के गुणों का विकास हमारे जीवन में होना आवश्यक है। ऐसे मार्गानुसारी ३५ गुणों का विश्लेषण महापुरुषों ने योगशास्त्र, धर्मसंग्रह, धर्मपरीक्षादि अनेक ग्रन्थों में किया है । मार्गानुसारी जीवन में अभी तक कोई पूजा-पाठ, सामायिक, माला जाप, आयंबिल - उपवास आदि किसी प्रकार के ऊँचे धर्म की कोई बात ही नहीं की है। यहाँ तो ३५ ऐसे गुण बताएँ हैं जो सभी धर्मों के सर्वसामान्य जीवों के लिए काम के हैं । आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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