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आवश्यक हैं। क्योंकि मिथ्यात्व की मंदता के आधार पर ऐसे गुणों का विकास करना है
और ऐसा जीवन बनाना है जो उसकी योग्यता-पात्रता परिपक्व कर सके। ऐसे सामान्य स्वरूप की बात यहाँ रखी है । (पृष्ट क्र. देखिए।) .. पाँच उचित व्यवहार
१) उचित विवाह-ब्राह्म, प्राजापत्य, आर्ष,दैव, गांधर्व, आसुर, राक्षस और पैशाच इन ८ प्रकार के विवाहों में से अनुचित का सर्वथा त्याग करके समान कुलाचार, शील और अन्य गोत्रियों, समानधर्मी-भाषी के साथ ही विवाह करना।
२) उचित घर- गृहस्थी को रहने योग्य अच्छे पडोसी सहित समान जाति-धर्मियों के मोहल्ले में, राजमार्ग पर, धर्मस्थान समीप पूर्ण हवा, पानी, प्रकाशयुक्त । अनेक द्वार रहित ऐसा उचित घर होना चाहिए।
३) उचित देश-धर्म के अनुरूप ऐसा आर्य देश, आर्य प्रजा, भोगभूमि नहीं, मात्र अर्थ-काम की प्रधानतावाला नहीं, परन्तु धर्मप्रधान देश, पूण्यभूमि, उपद्रवरहित ऐसे देश-राज्य में रहना ही उचित है।
४) उचित वेशभूषा-स्वगोत्र-देश-खानदानी-कुल को शोभे वैसा वेष धर्म की पहचान करावे, स्वजाति के अनुरूप, शोभा इज्जत बढावे,वैसे उचित वेश पहनें । उद्भट और मुफलिस वेश न पहनें । अपने शरीर की, अंगोपांगों की मर्यादा पूरी ढके वैसी ही उचित वेशभूषा होनी चाहिए।
५) परिमित (उचित) व्यय-आयोचित व्यय करें। आय से ज्यादा करने पर दिवाला निकलेगा। अति व्यय भी न करें, अल्पव्यय भी न करें, उचित व्यय ही करें। कृपण बनकर मात्र संचय ही न करें । शुभमार्ग पर व्यय करें। पाँच औचित्य पालन___६) प्रसिद्ध देशाचार पालन-शिष्ट पुरुषों को मान्य काफी लम्बे काल से रूढ ऐसे सुप्रसिद्ध देशाचार का पालन करना चाहिए। जिस देश में रहे उसके विपरीत आचरण न करें । लोकविरुद्ध का त्याग करें । लौकिक व्यवहार का योग्य आचरण करें।
७) अदेशकाल-आचरण- जिस देश में जो आचरण अनुचित है तथा जिस काल में जो आचरण सर्वथा अनुचित है उसका आचरण न करें । देशोचित और कालोचित आचरण करने का ही लक्ष रखें।
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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