________________
चूंकि क्षपकश्रेणी का साधक ही यहाँ पहुँचा है । इसलिए कषायभावजनित किसी भी कर्म के बंधन की रत्तीभर भी संभावना नहीं है। इसलिए १२, १३, १४ वे गुणस्थान पर सर्वथा निष्कषाय भाववाले वीतरागी महात्मा हैं । अब मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय ये चारों प्रकार के बंधहेतुओं का नामनिशान भी नहीं है । इसलिए कर्मबंध का भी नामनिशान नहीं रहेगा।
परन्तु योग भी एक पाँचवा बंधहेतु है । अभी वह अवशिष्ट बचा है । १२, और १३ वे इन दोनों गुणस्थान पर वीतरागी-सर्वज्ञ होने के बावजूद भी मन-वचन-काया के योग है तो सही। मन की प्रवृत्ति है। हाँ, १२ वे छद्मस्थ वीतरागी के लिए तो द्रव्य-भाव दोनों मन हैं परन्तु १३ वे गुणस्थान पर केवली-सर्वज्ञ जो हैं उनको मन से न तो सोचना है न विचारना है । कुछ भी नहीं । इसलिए मन हेतु कर्मबंधकारक नहीं बनेगा । परन्तु वचन
और काया को बंधहेतु कर्मबंध की प्रवृत्ति कराएंगे। अतः कर्म का बंध तो इतने से निमित्त के कारण भी होगा ही । सर्वथा तो बचना संभव नहीं है । इसी कारण यहाँ पर योग बंधहेतु की सत्ता का सूचक सयोगी केवली नामकरण उचित ही किया है। ___ यहाँ नियम ऐसा है कि... उत्तर उत्तर के बंधहेतु नीचे नीचे के गुणस्थानों पर जरूर से हैं । लेकिन नीचे नीचे के गुणस्थान पर रहे हुए बंधहेतु ऊपर-ऊपर के गुणस्थान पर सर्वथा नहीं रहते हैं। उदा. के लिए १ ले गुणस्थान पर मिथ्यात्व का बंधहेतु है, परन्तु आगे-ऊपर के किसी भी गुणस्थान पर मिथ्यात्व बंधहेतु का अस्तित्व ही नहीं है । अतः आगे-ऊपर का कोई जीव पतित होगा। यदि पडेगा-गिरेगा तो अन्य किसी बन्धहेतु की . प्रवृत्ति आदि के कारण से गिरेगा, परन्तु मिथ्यात्व से नहीं। मिथ्यात्व से तो १ ले गुणस्थानवाला ही गिरेगा। इसी तरह अविरति-प्रमाद-कषाय-योगादि सभी बंधहेतुओं की प्रवृत्ति १ ले गुणस्थान पर अवश्य ही रहेगी। अतः कर्मबंध सबसे होता ही रहेगा । लेकिन ऊपर-ऊपर चढने के बाद नीचे के बंधहेतुओं का कार्यक्षेत्र अब ऊपर नहीं रहेगा।
४ थे गुणस्थान का “अविरत सम्यग्दृष्टि” नामकरण अविरति बंधहेतु की प्रधानता के कारण उचित ही है।
___५ वाँ अविरति की न्यूनता और विरति के कुछ प्रवृत्ति के कारण देशविरतिधर नामकरण सार्थक है।
छठे गुणस्थान का नाम प्रमत्त संयत है । यहाँ प्रमाद बंधहेतु की प्राधान्यता है । अतः संयत के आगे प्रमत्त नामकरण बिल्कुल सार्थक है । अब नीचे के मिथ्यात्व तथा अविरति के बंधहेतुओं का नामनिशान नहीं है।
९५४
.
आध्यात्मिक विकास यात्रा