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________________ सयांगी, केवली - निम्न तालिका के आधार पर देखिए- सभी १४ गुणस्थानों के नाम न लिखते हुए यहाँ सिर्फ बंधहेतुओं के नामवाले जो शब्द प्रयुक्त हैं सिर्फ उनके नामों का उल्लेख किया है। देखिए- १ ला गुणस्थान मिथ्यात्व नामक है । यहाँ वैसे सभी बंधहेतु पाँचों भरे पड़े हैं। सभी एकसाथ मौजूद हैं । अतः सभी बंधहेतुओं से कर्म का भारी बंध होता ही है। लेकिन मिथ्यात्व से सबसे ज्यादा कर्मबंध होता है। यहाँ प्राधान्यतया मिथ्यात्व ज्यादा प्रवृत्त है। कार्यरत है। अतः कर्मबंध पाँचों बंधहेतुओं द्वारा बहुत ज्यादा प्रमाण में होता ही रहता है । फिर जैसे ही जीव पहले गुणस्थान से ऊपर उठ जाता है और सीधे ४ थे गुणस्थान पर पहुँचा कि सम्यक्त्व पाया । सम्यक्त्व पाते ही अब मिथ्यात्व गायब । अब ५ बंधहेतुओं में से ४ शेष बचे हैं । ये चारों ४ थे गुणस्थान पर सक्रिय हैं। जी हाँ, ४ थे गुणस्थान पर देव-गुरु-धर्म पर श्रद्धा काफी अच्छी बनी है, जिससे उनको मानने की भावना ऊँची बनी है। परन्तु अभी उनका आचरण करने की कोई तैयारी नहीं है । इसलिए वह आचरण न करके श्रद्धा भाव से मानने में कोई कमी नहीं । रखेगा। आचरण के अभाव में अविरति का बंधहेतु खुल्ला है। इसलिए धर्म में श्रद्धा रखते हुए भी अविरति-अव्रतजन्य हिंसा-झूठ-चोरी आदि के सभी पाप करता । रहेगा। और ६ जीवनिकाय की विराधना भी DHA देशविरत अविरत अप्रमत्तभावपूर्वक "ध्यानसाधना" ९४९
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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