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________________ रहने की प्रतिज्ञा जो कर चुके हैं ऐसे उत्तम भाग्यशालियों को इस राग-द्वेष की निबिड ग्रंथी के अवरोधक को अच्छी तरह पहचान लेना चाहिए। समझकर ऐसे रोडे बीच में से दूर करके भी अपनी कूच - प्रगति को न रोकते हुए आगे बढते ही रहना चाहिए । चरमावर्त में प्रवेश अचरमावर्त के अनन्त पुद्गल परावर्त काल में जीव ने अनन्त जन्म-मरण बिताये । उन अनन्त जन्मों में मिथ्यात्व की प्राधान्यता रही । मिथ्यात्व के भारी उदय के कारण भारी बढाता पापों के करने की प्रवृत्ति रही । उसके कारण भारी कर्मों को जीव बांधता रहा। और भारी कर्म बांधकर भवपरंपरा रहा । परिणामस्वरूप संसार में घूमता रहा । भवभ्रमण करते करते अनन्त काल बिताया । अनन्त भव बिताए । अन्त ही नहीं आया । इतने अनन्त काल की गणना करने के लिए... पुद्गल परावर्त काल का प्रमाण शास्त्रकारों ने ८ भेदों में बताया है -- की प्रयाण दिशाम माक्षप्राप्ति • अर्धपुद् गल ४६२ काल बादर द्रव्य पु. प. काल T बादर काल पु. प. काल चरमावर्त में प्रवेश अनन्त-पुद्गलपुरावतकाल सम्यक्त्व की प्राप्ति पुद्गल परावर्त काल सूक्ष्म द्रव्य पु. प. काल सूक्ष्म काल पु. प. काल ३ बादर क्षेत्र पु. प. काल बादर भाव पु. प. काल आध्यात्मिक विकास यात्रा ४ सूक्ष्म क्षेत्र पु. प. काल ८ सूक्ष्म भाव पु. प. काल
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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